महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ व्यक्तित्व और कृतित्व | Maha Kavi Prithviraj Rathod Vyaktitv Aur Krititv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
377
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ पृथ्वीराज राठौड : व्यक्तित्व शोर इतित्व
पर ही रसपृर्ण होते है अनुभव, वय ग्रौर ज्ञान की प्राप्ति होने पर ही पुरुष, सिंह
और दिगम्बर पूर्ण माने जातेहै 11१11 बलों के जीवन का साफल्य हल चलाने मे है,
ऊंट का साफलय मार्ग तय करने मे है तथा नर, घोडा श्रौर फलादि पकने पर ही
रसपूर्ण व स्वादिष्ट होते है ॥1२॥।)
चपादे सम्बन्धी अन्य सामग्री पर श्री श्रगरचेंद नाहटा ने प्रकाश डाला है ”
एक बार पृथ्वीराज को चिंतित मत देख कर बादशाह ने उनकी उदासीनता का
कारण पूछा तब पृथ्वीराज ने बडा मर्मस्पर्शी उत्तर दिया--
प्रश्न --मन उतराधो तन दखण कहो न कवण विचार ?
उत्तर -मन गुणवत्ती मोहियो, तन रूधो दरबार ॥१॥
के सेवइ पग नॉथ ना के सेबइ तट गध ।
पृुथु सेवइ चपाकली, सदल, सरूप सुगंध ॥॥१॥।
(हे प्रथ्वीराज! तुम्हारा मन उत्तर तथा तन दक्षिण की भरोर है श्र्थात् तुम्हारा
मन श्रस्थिर है कहो तुम किन विचारों मे लीन हो ? पृथ्वीराज ने उत्तर दिया कि
मेरा मन एक गुवणती नारी ने मोह लिया है जबकि मेरा शरीर भ्रापके दरबार मे
रुद्ध है कोई नाथ के चरणों की सेवा करते है तो कोई गध के उपासक है, पर
पृथ्वीराज तो चंपाकली के ध्यान मे लव लीन है जो बहुत मस्त, सुगठित, सुंदर व
सुगधि से पूर्ण है यहा चपाकली मे इ्लेष है चपादे भर चम्पा पुष्प)
बादशाह उनके उत्तर पर रीक गये और बीकानेर जाते की श्राज्ञा प्रदान की
बारह वर्ष के पश्चात् महल मे पधारने पर विरहातुर क्षीणकाय चपादे ने
अपनी व्यथा बडी मामिकता से प्रकट की--
बहु दीहा हू वलल्लहो, आया मदिर श्राज।
कंवल देख कुमकछाइया, कहो स केहइ काज ।।१।।
चुगे चगाये चच भरि, गये निलज्जे करग।
काया सर दरियाव दिल, आइज बेठे बग्ग ।।२।।
(हे प्रियतम झाप बहुत दिनो के पश्चात् महलो में पधारे हैं कौनसा कारण
है कि आप मेरा मुख कमल देख कर उदास हो गए माँस तो निरलेज्ज कोए अपने
चोचो मे भर कर उड गए है यह काया तो नदी है श्रौर दिल समुद्र है, जिसके
किनारो पर बयुले भ्रा बेठे है भ्र्थात् अब इस शरीर में हड्िडियाँ ही शेष रह गई है )
१ आचार्य प० बदरीप्रसाद साकरिया द्वारा सपादित “राजस्थान भारती” भाग ७, अंक तीन में
आओ वाहुठा का लेख “रॉठौड पृथ्वीराज की पत्नी चपावती,'
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