विचार वैभव | Vichar Vaibhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राणृविद्या के अनुसार “हुदय शब्द से शरार के एक पतले, सूद्रम ओर कोमल मांस के टुकड़े का बोध होता है, परन्तु जहाँ तक काव्य-जगत्‌ से इसे शब्द का संवंध है, हम इस मानसिक-दृत्ति, भाव और अनुभाव का सश्चित भाण्ार अथवा स्नेहशीलता, प्रेम, साहस, शक्ति, गुस-भावना और अमिप्राय का वास-स्थान कह सकते हैं । प्रकृति का पहिला प्रतिबिम्ब पड़ने पर उसकी व्यापकता से प्रभावित होकर मानव-मस्तिष्क के प्रतिभा-तत्व-सम्बन्धी श्रथवा सैद्धान्तिक-भाग की अन्वैषण-प्रज्ञत्ति, गाति्शाल होंकर कैसे कार्य्य करती है और हृदय में काव्यरचना की भावना का किस प्रकार उद्बेक करती हैं ? कल्पना एवं अनुभव के स्पष्टीकरण से काव्य में “रस”? का सश्जार किस प्रकार होता हैं ओर रसों का प्रवाह आत्मा को परमा- ननन्‍्द या रसावस्था की सीमा तक कैसे पहुँचा देता है ? इस “विचार- चैभव” नामक पुस्तक में ऐसे सब प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। इस पुस्तक में, मेंने काव्य के मूल रागात्मक, मनस्तात्विक और दाशंनिक सिद्धान्तों को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करन का प्रयास किया है | कविता को तुच्छु एवं अ्रवहेलना की वस्तु न समझना चाहिए, कांवता के सम्बन्ध में बिना समझे बूफे अपनी राय देना सर्व था अनुचित है| ““विचार- घभव” में काव्य-सम्बन्धी प्रायः सभी आवश्यक विषयों का समावेश किया गया है ओर कविता के समस्त प्रचलित रूपों पर प्रकाश डाला गया है | द प्रस्तुत पुस्तक में निम्नालाखित पारिच्छेद हैँ :--- ( १ ) काव्य में कल्पना | (६ २ ) रसोद्रेक | 1 ६ हे ) साहित्य का आधार | ४ 1० ( ४ ) कविता का विऋस-सेद्धान्त (1१९००ए ० 11ए01प0007)




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