निराला रत्नावली | Nirala Rachanavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.13 MB
कुल पष्ठ :
279
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मैं 27 अवतूँवर 1923 का पं. महावी रप्रसाद द्विवेदी को लिखा गया मिराला को एक पत्र दिया है जिसमें उन्होंने लिखा था कि कलकत्ते में उनकी सुलाकात बाबू मेथधिलीशरण गुप्त और श्री रायकृप्णदास से हुई तो उन्होंने एक-एक अनामिका दूनो जमेन क दीन। इससे यह स्पष्ट है कि प्रथम अनामिका दिसम्बर 1923 ही नहीं 27 अरकतूबर 1923 के भी पहले निकली । इसे श्री नवजादिकलाल श्रीवास्तव ने प्रकाशित किया था । पुस्तक बालकृष्ण प्रेस (23 शंक्ररघोष लेन कलकत्ता) मे छपी थी जिसके मालिक श्री महादेवप्रसाद सेठ थे । प्रेस का जो पता था वही प्रकाशक का भी था । परिमल के प्रकाशन-वर्षे को लेकर कोई बखेडा नहीं है। इसके प्रथम सस्करण (गंगा-पुस्तकमाला-कार्यालय लखनऊ) मे दी गयी सूचना के अनुसार यह पुस्तक संबतु 1986 (वि.) मे प्रकाशित हुई । अवतूवर 1929 की सुधा में साहित्य- सूची स्तम्भ के अन्तर्गत परिमल का प्रकाशन-काल सितम्बर 1929 बतलाया गया है । साहित्य-साघना (3) मे 25 सितम्बर 1929 का निराला को लिखा हुआ पं नन्ददुलारे वाजपेयी का एक पत्र संकलित है जिसमें उन्होंने लिखा है कि आज परिमल देखने को मिली । इससे परिमल के सितम्बर 1929 मे प्रकाशित होने की बात की पुष्टि होती है। गीतिका के प्रथम संस्करण (भारती भण्डार लीडर ब्रेस इलाहाबाद) में यह सूचना दी गयी है कि यह पुस्तक संवत्त् 1993 (बि.) में प्रकाशित हुई। निराला ने 7 नवम्बर 1936 को डा. शर्मा को एक पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने उन्हे यह समाचार दिया था कि गीतिका सीम-मगल तक तैयार हो जायेगी । [साहित्य-साधना (3) ] उन्हीं को 9 नवम्बर 1936 को वे पुनः लिखते हैं कि गौतिका निकल गयी । (उपर्युक्त) इससे यह स्पष्ट है कि भीतिका 1936 ई. के नवम्बर के आरम्भ में निकली । द्वितीय मनामिका के प्रथम सस्करण (भारती भण्डार लीडर प्रेस इलाहाबाद) मे जो सुचना दी गयी है उसके अनुसार यह पुस्तक संवत् 1995 (वि.) मे प्रकाशित हुई । 1995 में 57 घटाकर विद्वानों ने सरल ढंग से द्वितीय अनामिका का प्रकाशन-वर्ष 1938 ई स्थिर कर दिया है । प्राप्त प्रमाणों से यह गलत साबित होता है। 31 दिसम्बर 1938 को निराला ने कलकत्ता से श्री वाचस्पत्ति पाठक को एक पत्र में लिखा था प्रूफ भी भेज रहा हूँ । पर राम की शक्तिपूजा एक बार और देखूंगा । [साहित्य-साधना (3) ] पाठकजी भारती भण्डार से ही सम्बन्धित थे जिससे यह समझा जा सकता है कि निराला ने यह पत्र उन्हें द्वितीय झनामिका के प्रकाशन के सम्बन्ध मे ही लिखा था । प्रूफ उसी पुस्तक का था और राम की शक्तिपूजा उसी पुस्तक मे संकलित है । निष्कर्ष यहू कि 1938 ईं. की अन्तिम तिथि तक भी वह पुस्तक प्रकाशित नही हुई थी । निराला का एक दूसरा पत्र 25 माचें 1939 का आचायें जानकीवल्लभ शास्त्री के नाम लिखा हुआ है जिसमे वे कहते हैं तुलसीदास और अनामिका निकल गयी । (निराला के पत्र) इसका मतलब यह हुआ ।क द्वितीय झनामिका का प्रकादन- काल 1938 ई.का अन्त न होकर 1939 ई. का आरम्भ है । तुलसीदास नामक निराला की कविता 1934 ई. सें रची गयी थी । 1935 ई. की सुधा के अकों निराला रचनावली-1 / 15
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