विद्वज्जन बोधक | Vidavjjan bodhak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
554
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोक्षलूक्ण | ९
जम>-
कया है सो नासमात्र धर्मकया है ॥ १४॥ मु
अथ मोक्षछत्तण । दोहा ।
धर्म अर्थ जग काम फुनि, मोक्ष ठुर्य.पुरुषाथे ।
, तिन शधि उत्तम विनय जन,गिनत मोक्ष परमार्थ।६
सो ही पुरुषार्थ सिद्ध-चुपाय मैं;--
आयो छन्द 1
सर्वविवर्त्तोत्तीए्ण यदा स चैतन्यमचलमामोति ।
- मथति तदा कृतकृत्यः सम्पक् पुरुषाथेमापन्नः ॥११॥
अथ--सो आत्मा जा समय सर्वपर्योयनितें रहित जैसा
अचछ चैतन्यने भाप्त द्वोय है, ता समय कृतकृत्य हुवो संतो उत्तम
पुरुषाथ न प्राप्त होत है ॥ ११॥
प्रश्न--असा परम पुरुषाथरूप मोक्षका स्वरूप कहो ९
उत्तर-तत्त्वाथ सूत्रम । सूत्र--क्ृत्स कम विप्रमोक्तो
मोक्तः
अथ--समस्त कर्मनिका अत्यन्त छूटनां है सो भोक्त है।
तथा आदिपुराणमैं;--
ख्होफ 1
निःशेषकर्म निर्मोन्षो सोक्चोड्नंतसुखात्मक! ।
सम्पग्विशेषणज्ञानदष्टिचारित्रसाधघन! ॥ ११७॥
अय --समस्त कमेनिते छूटनां है सो मोक्त है, अर अनन्त
सझुख्खरूप है सो सम्यक विशेषणयुक्त शानदशन चारिध्र है
आाघन जाको असो है ॥ १३७ ॥ *
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