विद्वज्जन बोधक | Vidavjjan bodhak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मोक्षलूक्ण | ९ जम>- कया है सो नासमात्र धर्मकया है ॥ १४॥ मु अथ मोक्षछत्तण । दोहा । धर्म अर्थ जग काम फुनि, मोक्ष ठुर्य.पुरुषाथे । , तिन शधि उत्तम विनय जन,गिनत मोक्ष परमार्थ।६ सो ही पुरुषार्थ सिद्ध-चुपाय मैं;-- आयो छन्द 1 सर्वविवर्त्तोत्तीए्ण यदा स चैतन्यमचलमामोति । - मथति तदा कृतकृत्यः सम्पक्‌ पुरुषाथेमापन्नः ॥११॥ अथ--सो आत्मा जा समय सर्वपर्योयनितें रहित जैसा अचछ चैतन्यने भाप्त द्वोय है, ता समय कृतकृत्य हुवो संतो उत्तम पुरुषाथ न प्राप्त होत है ॥ ११॥ प्रश्न--असा परम पुरुषाथरूप मोक्षका स्वरूप कहो ९ उत्तर-तत्त्वाथ सूत्रम । सूत्र--क्ृत्स कम विप्रमोक्तो मोक्तः अथ--समस्त कर्मनिका अत्यन्त छूटनां है सो भोक्त है। तथा आदिपुराणमैं;-- ख्होफ 1 निःशेषकर्म निर्मोन्षो सोक्चोड्नंतसुखात्मक! । सम्पग्विशेषणज्ञानदष्टिचारित्रसाधघन! ॥ ११७॥ अय --समस्त कमेनिते छूटनां है सो मोक्त है, अर अनन्त सझुख्खरूप है सो सम्यक विशेषणयुक्त शानदशन चारिध्र है आाघन जाको असो है ॥ १३७ ॥ *




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