शिव संहिता | Shiv Sanhita

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Shiv Sanhita by रामचरण - Ramacharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमपटल: । (२७ ) संत्तार मनोराज्यवत्‌ है. जेंसे मनुष्यका मनोराज्य मि- थ्या है; उसी प्रकार आत्माका इच्छाभूत यह जगत्‌भी मिथ्यांहे शुद्धवह्ममें ज्ञानहपी विद्याका संबन्ध है ॥०५॥ मूलम-ब्रह्मतेजों5शतो याति ततद आभास ते नभः ॥ तस्मात्मकाशते वायुर्वायोर- ग्रस्ततां जलस्‌ ॥ जद ॥ प्रकाशते तत युथ्वी कल्पनेयं स्थिता सति॥ आकाशा- डायुराकाशपवनादग्रिसेभवर ॥ ७७ ॥ दीका-उस ब्रह्मके तेजभंशंसे आकाश उत्पन्नभया: आकाशतसे वायु उत्पन्न भया, वायुसे भमि उत्पन्न भया अग्निति जल भया। जठसे पृथ्वी उत्पन्न भई, यह करप- ना हे आकाहसे वायु उत्पन्न भया ओर आकाश वायुसे तेन उत्पन्न भया ॥ ७६ ॥ ७७॥ मूलस-खवातगि्ल व्योमवाताभिवारि तोमही ॥ खंशब्दलक्षणं वायुय्ंचलः सप- शैलक्षणः ॥ ७८॥ स्याट्रपलक्षणं तेज सलिलं रसलक्षणम ॥ गन्धरक्षणिका एथ्वी नान्‍्यथा भवति धवस ॥ ७९ ॥




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