निरुक्त्त ऑफ़ यास्का [चैप्टर्स -1,2,3,4 & 7] | The Nirukta Of Yaska [Chapters -1,2,3,4 & 7]

Book Image : निरुक्त्त ऑफ़ यास्का [चैप्टर्स -1,2,3,4 & 7] - The Nirukta Of Yaska [Chapters -1,2,3,4 & 7]

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

उमा शंकर शर्मा 'ऋषि' - Uma Shankar Sharma 'Rishi'

No Information available about उमा शंकर शर्मा 'ऋषि' - Uma Shankar Sharma 'Rishi'

Add Infomation AboutUma Shankar SharmaRishi'

यास्काचार्य - Yaskacharya

No Information available about यास्काचार्य - Yaskacharya

Add Infomation AboutYaskacharya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आओ, तृतोय-परिच्लेद निरूक्त कीं विपय-वस्तु [ के ] प्रथम अध्याय [ प्रथम अन्याय--इस रा तुलना--निषण्दु की रूपरेसा, आन्तरिक तथा धाह्य>पद भेद--माम और आरयात--उपसर्ग--निपात और उनके भेद--शाद नित्य हे या अनित्य ?-पतख्नलि--स्फोटवाद-- सीमासकों को युक्ति-प्लेटो--भाषा म मनुष्या और देवताआ फा ऐेफ्य--भाय विकार--शब्दा या घातुत्र सिद्धान्व--शाफटायन और गाग्य-गाग्ये का पृर्पक्ष-यास्त्त के उत्तर-सभो शाद्गा फो घातुज मानने फे कुफल-सिद्धान्व को विशेषता-निम्क्त को उपयोगिवा-- सन्‍्त्र निरर्थक दूँ या साथर ?-कौत्स या पृव॑पक्ष और यास्क्र था उत्तर | ] इस परिच्छठ में हम निरक्त कअ तरद्भ मांग वा अर्थात उसदी विपय वह्तु दा ध्रालोचतात्मर अध्ययन बरग। सुविधा थे छिए प्रह्तुत सस्व॒रण ये अध्यायों ( प्रधम चतुथ गतम ) क। ही हम अरे अध्ययन कप से रंग । आग घढ़ कर हम पराथंय कि सम्यूश निदण बा परिचय पाने बे लिए इन अध्यायों का ही अध्ययन पर्यालत है ॥ चकि निरक्त क दितीय अध्याय व दिनोय पाल से निपण्टु के धाम्हो वा ह्यास्यान आारस्म हुआ है अवएव सब तक निश की भूमित्रा ही वणित है-- पद हम ऊपर देख बाद हैं । पिशक व लिए आय वस्तुओं था गवरन बरते यारत ने अपन अमित्रा खक्ड मे पर्याल प्रद्ात डाएटा है भौर यह भो एस ग्रदार कि णुछ ओर जानते बे) बचता ही नहों ॥ निगत्त बा मारराथ धएी उमशा आधार घाहि शैसी नमिव्रा मता बथित है। निरक्त बे प्रधम धध्याय की मुज्ता सधवनगाहिए ढ़ उनववोरि रे माप्यों जी भूमि य कीजा सदठा है। थे भमिष्तय है--महामाष्य की पस्यशाद्विब भमिता वद्धयादाय की आारीरक मो्मासा मझात्प ममिक्रा रामानज का ब्रह्ममृत्रवाध्य मूमिणा ( ब० सू० १1१३ १)श और सापथ को देल्मान्य मुमिद्रायें 4९ जिस प्रदार रे ज््ऋचणज््त्किःतित हा एहईलमान्पमूमिकममर', सम्पत्क प्र० दल रद उपाण्णग्य 1 (2४)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now