ऋग्वेद संहिता भाषा भाष्य खंड 5 | Regved Sanhita Bhasha Bhashya Khand 5

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Regved Sanhita Bhasha Bhashya Khand 5  by जयदेव जी शर्मा - Jaidev Ji Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २३ ) पशञ्चमोष्ध्यायः सू० [ ६८ ]--ईश्वराराधना, उसकी स्तुति और आर्थना । सशष्टिकर्ता का घुना पुनन सतन | (२) विश्व का विस्तारक परमेश्वर । (३ ) चलशाली । ( ४-५ ) राजा का वर्णन । ( ६) सबलोक-पति अभ्ु (७ ) अजाओं का स्वासी अझ्ु। (८) अपार इक्तिशाली अभु | € ९-१३ ) उसकी रतुति और प्रार्थनाएं । ( १४ ) भात्मा के ६ नर ६ इन्द्रिय गण। ( १५ ) अश्वमेघ-राष्ट्रशासनवत्‌ देहव्यवस्था 1 ( १६ ) +<ईंष्ट्र में उत्तम वीरों की नियुक्ति । ६ सेनापतियों की नियुक्ति | वधूमान्‌ अश्वों का रहस्य । अध्यात्म व्याख्या | देह सें चाणीवद्‌ राष्ट्र मे राजसभा का रूप। ( १९ ) नियुक्त जनों को उपदेश कि कोई भी निन्दुर्नीय कर्म न करें 1 ( ए० ६३८-६४४ ) स्‌० [ ६९ ]<राष्टर के अजाजनों के कत्तेव्य । (३-४ ) प्रजाओं द्वारा उत्तम शासक की स्थापना । (६ ) वेद॒वाणियों द्वारा अतिपादित परमेश्वर सधुर रसवत्‌ रूप | पाप्त पद सखावत्‌ अश्ठु का मोक्ष सुख का पद । सखा अझ्ु । ( ८ ) अभ्ु की अचना का उपदेश । ( ९ ) विद्वान का अजाजनों को उपदेश | ( १० ) यौओंवत्‌ प्रजाओं का रूप। राजा का भज्ञा के अति कत्तेव्य । वरण योग्य राजा वरुण । ( १२ ) वरुण आचार्यवत्‌ 1 उत्तम नायकव॒त्‌ भवबन्धन सोचक अभ्भु । (१४) पक्कत ओदन के तुल्य शिप्य का गुरु से क्ञान अहण । राजकुमार के रथारोहणवत्‌ । राष्ट्शासन पद का भआरोहण, और जीव का ब्रह्मपद-आरोहण । ( १६ ) ग्ृहपति का ग्रहस्थ रथ पर जारोहण । राजा-राष्ट्र का दुग्पति भावों | ( १७ ) राजतन्त्रवत्‌ अध्यात्मखराद की उपासना । खेती करने के तुल्य देंह से कर्मफल आप्मि 1 ( ४० ६४७५-६७३ ) स्‌० [ ७० ]|--सवॉपरि वायक शासक का वर्णन ! प्रश्न परमेश्वर की ग़ुण-स्तुति 1 (५) पक्षान्तर में वीर पराक्रमी शासक का वर्णन । उसके कत्तेच्य ! ( १० ) पितावत्‌ अश्चु | हुए.्ट दसनकारी वा राजा।




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