गोभिलीय ग्रह्य कर्म प्रकाशिका | Gobhiliya Grahya Karma Prakasika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८५ ७. /5
वषरस वववरण ।
होम कार्य में सर्वत्र-निम्नाड्ित घिधि का अनुसरण करना चाहिए ।
१--यज्ञमान अपने दक्षिण हाथ फो बाएँ हाथ के बाहर से रखकर
दोनों हाथों की हथेतियाँ को स्वमिखुख रखते हुए भूमि जप करे ।
२-अ्रग्नि के जिस ओर से जाकर ब्रह्मासन पर जल की घारा देवे।
उसी ओर से आकर भग्नि के उत्तर पात्रा सादन करे।
३ श्रग्नि फे उत्तर ख्रुवा मे जल रक्खे यद् प्रणोता न रकखा गया हो।
४-हवन के पहले २ श्रग्नि में एक समिध चढ़ाकर “अदिते अज्ुम-
न्यस्व” इत्यादि से उदक्ाञ्जज्नि देकर “देवसवित०” से तीन
चार परियुक्षण करे ओर हवन के पश्चात् भी एक समिघ अग्नि
में चढ़ाकर प्रथम देवलबित०० पयुक्षण कर तद्पश्चात् “अ्रदि-
तेश्रनुम #स्था” मन्त्र से उद्काञ्जलि देवे । ह
७५- प्रणीता में ७ अंग्रुूल का द्एडा होना चाहिए ।
६-स्वाइुकरटक, विकंकत, बेकंकत, खुवाबृक्ष, अ्रन्धिल, व्याप्र-
पात् ये ५ नाम वेहली दुक्ष के हैं और वह बेर वृक्ष के समान
होता है।
७-तत्रावसथ्योब्छुकं महान से रूत्वा तत्र वेश्वदेवा्थ पाक विधान
महानसादडूग राना हृत्यावसथ्ये निधाय ततः पाकादन्षसुदृध्चृत्या-
भिघाये अग्नेसत्तरतः प्राईुमुखः उपविश्व मणिकोद्केनारिति
पयुध्ष्य दक्षिण ज्ञान्चाच्य हस्तेन द्वादशपर्बपूरकमोदनमादाय
जुहयात् । गदाधर भाप्पे ।
>ौत०+>२४:५२८-१८०८७०७ ४५
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