गोभिलीय ग्रह्य कर्म प्रकाशिका | Gobhiliya Grahya Karma Prakasika

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Gobhiliya Grahya Karma Prakasika by शुकदेव वर्मा - Shukdev Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८५ ७. /5 वषरस वववरण । होम कार्य में सर्वत्र-निम्नाड्ित घिधि का अनुसरण करना चाहिए । १--यज्ञमान अपने दक्षिण हाथ फो बाएँ हाथ के बाहर से रखकर दोनों हाथों की हथेतियाँ को स्वमिखुख रखते हुए भूमि जप करे । २-अ्रग्नि के जिस ओर से जाकर ब्रह्मासन पर जल की घारा देवे। उसी ओर से आकर भग्नि के उत्तर पात्रा सादन करे। ३ श्रग्नि फे उत्तर ख्रुवा मे जल रक्खे यद्‌ प्रणोता न रकखा गया हो। ४-हवन के पहले २ श्रग्नि में एक समिध चढ़ाकर “अदिते अज्ुम- न्यस्व” इत्यादि से उदक्ाञ्जज्नि देकर “देवसवित०” से तीन चार परियुक्षण करे ओर हवन के पश्चात्‌ भी एक समिघ अग्नि में चढ़ाकर प्रथम देवलबित०० पयुक्षण कर तद्पश्चात्‌ “अ्रदि- तेश्रनुम #स्था” मन्त्र से उद्काञ्जलि देवे । ह ७५- प्रणीता में ७ अंग्रुूल का द्‌एडा होना चाहिए । ६-स्वाइुकरटक, विकंकत, बेकंकत, खुवाबृक्ष, अ्रन्धिल, व्याप्र- पात्‌ ये ५ नाम वेहली दुक्ष के हैं और वह बेर वृक्ष के समान होता है। ७-तत्रावसथ्योब्छुकं महान से रूत्वा तत्र वेश्वदेवा्थ पाक विधान महानसादडूग राना हृत्यावसथ्ये निधाय ततः पाकादन्षसुदृध्चृत्या- भिघाये अग्नेसत्तरतः प्राईुमुखः उपविश्व मणिकोद्केनारिति पयुध्ष्य दक्षिण ज्ञान्चाच्य हस्तेन द्वादशपर्बपूरकमोदनमादाय जुहयात्‌ । गदाधर भाप्पे । >ौत०+>२४:५२८-१८०८७०७ ४५




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