ज्ञान - प्रदीपिका | Gyan - Pradipika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञान-प्रदीषिका-।
-मिश्रे मिश्रफल॑ त्रू यात् श्रह्मणाश्व वर्ल॑ क्रमात् ।
शिलां भानोवुधस्याहुः सत्पाल' तूषर विधोः ॥७०
सिंतस्य मुक्तास्फरिक प्रवाल॑ भूछुतस्य च ।
धथस' भानुपुत्र॒स्य मन्लिणः स्यान्मनःशिल्ा ॥७ ह॥
नील शनेश्व वैड्य भ्गोर्मरकर्त विदुः ।
सूर्यकान्तो दिनेशस्य चन्द्रकान्तो निशापतेः ॥७२॥
तक्तइग्रहवशाहरण तसद्राशिवशादरपि
बंलावछविभागेन मिथ मिश्रफल बदेतू ॥७१॥
ब्राशों ठुखगैद् एड युक्त वा मर्यमूषणम ।
तत्तद्राशिवशादन्य तत्तद्र प॑ विदिदिशेव, 1४४). ५...
.. $ श्री महातरीर ६०:
इति घातुचिन्ता । श्री महा।
पंप रमन बगल लय बराक | टठफ क्ताइ' ७०००
मूलचिन्ताबिधो शा
क्षुद्सस्यानि भोमस्य सस्यानि बुधशुक्रयोंः ॥१॥
कत्ताणि शस्य भानोश्च वृत्तश्रन्द्रस्य बल्री ।
गुरोरिच्षुध गोश्विश्षा भूखहाः परिकीर्तितोः ॥श
शनिधूमोरगाणाश्र दिक्तकण्डक्मूर॒हाः ।
अजञालिक्षुद्रसस्यानि वृबकर्कितुछालता ॥शा
कन्यकामिथुने दुत्ताः कण्टक्रहध टे झुगे।
इक्तुमीनक्रमाल्यंच केचिदाहुमेंनीबिणयः ॥»॥
अकण्टकदुमाः सोस्याः ऋछूरा। कयटकमूरुहाः ।
युग्मकण्यकमादित्यों भूमिज्ञो हस्वकशदकः ॥॥
वक्राश्व कण्टकाः प्रोक्ताः शनेश्व रभ्ुुज्ंगयोः ।
पापग्रहार्णा क्षेत्रणि तथाकर्डकिनो द्रुमाः ॥#॥
शिष्टकत्ताणि सोम्बस्य भ्रुगोनिष्कश्टकहुमाः ।
कदली चोषधीशस्य गिरिवृत्षा विवस्वतः ॥७॥
वृहत्पत्युता दृत्ती नारिकेलादयों शुरो३ ।
तालाएन श्व राहोश्व सारासारों तरू बदेत ॥८॥
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