धम्मपंद | Dhammpanda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
169
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ हि
॥ नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स ॥
१; निरवेरता
१. अ-वबरं वर-शमनम्
. धर्ममात्र मन.पुर.सर मनः:प्रधान, ( किवहुना ) मनोमय होता
है। यदि कोई प्रदुष्ट मन से बोलता या करता हूं, तो दुःख
उसका ठीक वेसे ही अनुसरण करता हैं, जेसे गाड़ी का
पहिया खीचनेवाले ( बेल ) के पर का ।
« धर्ममात्र मन पुरःसर मनःप्रधान, ( किवहुना ) मनोमय होता
हैं। यदि कोई प्रसन्न मन से बोलता यां करता है, तो सुख
उसका ठीक वसे ही अनुसरण करता है, जंसे सदा साथ
रहनेवाली ( अपनी ) छाया।
: मुझे डाँटा, मुझे मारा, मुझे जीता, मुझे लूटा' इस तरह की
गाँठ जो अपने मन में वॉध रखते है, उनका वर ( कभी )
शान्त नही होता ।
. मुझे डॉटा, मुझे मारा, मुझे जीता, मुझे लूटा' इस तरह की
गॉँठ जो अपने मन में वाँध नहीं रखते, उन्हींका वर श्ान्त
होता हैँ ।
इस संसार में वेर से वर कभी ज्ञान्त नहीं होता। अवेर
से ही वर शान््त होता है । यही सनातन धर्म है ।
» हम सभीको एक दिन यहाँ से जाना हे, इस तथ्य को सामान्य
लोग नहीं जानते । जो इस तथ्य को जानते हे, उनके सारे
कलह ( विकार ) झ्ान्त हो जाते हे ।
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