धम्मपंद | Dhammpanda

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Dhammpanda by कुन्दर दिवाण - Kundar Divan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ हि ॥ नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स ॥ १; निरवेरता १. अ-वबरं वर-शमनम्‌ . धर्ममात्र मन.पुर.सर मनः:प्रधान, ( किवहुना ) मनोमय होता है। यदि कोई प्रदुष्ट मन से बोलता या करता हूं, तो दुःख उसका ठीक वेसे ही अनुसरण करता हैं, जेसे गाड़ी का पहिया खीचनेवाले ( बेल ) के पर का । « धर्ममात्र मन पुरःसर मनःप्रधान, ( किवहुना ) मनोमय होता हैं। यदि कोई प्रसन्न मन से बोलता यां करता है, तो सुख उसका ठीक वसे ही अनुसरण करता है, जंसे सदा साथ रहनेवाली ( अपनी ) छाया। : मुझे डाँटा, मुझे मारा, मुझे जीता, मुझे लूटा' इस तरह की गाँठ जो अपने मन में वॉध रखते है, उनका वर ( कभी ) शान्त नही होता । . मुझे डॉटा, मुझे मारा, मुझे जीता, मुझे लूटा' इस तरह की गॉँठ जो अपने मन में वाँध नहीं रखते, उन्हींका वर श्ान्त होता हैँ । इस संसार में वेर से वर कभी ज्ञान्त नहीं होता। अवेर से ही वर शान्‍्त होता है । यही सनातन धर्म है । » हम सभीको एक दिन यहाँ से जाना हे, इस तथ्य को सामान्य लोग नहीं जानते । जो इस तथ्य को जानते हे, उनके सारे कलह ( विकार ) झ्ान्त हो जाते हे ।




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