बाजीराव - मस्तानी | Bazirav Mastani

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Bazirav Mastani by केशर - Keshar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ बाजीराव-मस्तानी रानी ने चौंक कर देखा-““ओह, तुम, नीरा जी !” उसने दार पर खड़े तरुण मराठा-सरदार का स्वागत किया--ू“श्राश्रो, श्राश्रो, कब आये ?' “पूज्य राव केसे हैं माभी !” उसने झुककर रानी का चरणुस्पश कर लिया । “कैसे हैं !” रानी का स्वर थरथरा रहा था-““नीराजी, ठम्हारे महाराष्ट्र को पेशवा के बलिदान से क्या मिल जायगा ?” पेशवा माता का पत्र अब तक उसके हाथ में था--“देखो, एक माँ ने श्रपने पुत्र को...” “में सब जानता हूँ भाभी 1” “जानते हो ?” दर डॉ 22 “तो कया तुम भी पेशवा के बलिदान का समर्थन करते ही नीरा जी!” रानी का स्वर तीव्र हो या । हाथ से पत्र छूटकर फश पर रा रहा । नीराजी का गौर मुख श्रारक्त हो गया--“भामी,; आप मुझे श्राज्ञा दीजिये, पूज्य राव की शान्ति को झ्रगर श्रपना मस्तक देकर ले ्राने में सफल इुश्रा तो मेरा जीवन सार्थक हो जायगा । मैं खूब जानता हूँ, शाहू. महाराज ने सहमति भले ही अ्रकट की हो परन्तु मस्तानी के पति सम्पूर्ण महाराष्ट्र में जो कुत्सा उमड़ पड़ी है, उसके समक्ष, उनके प्राणों का मूल्य नगण्य ही सिंद्ध होगा...” ८६ हूँ 122 'ाप मुक्ते श्राह्मा दे” नीरा जी के झन्तंस की उत्तेजना स्वर में छुलकी पड़ रही थी--““मेरी और मुझ जैसे पेशवा-भक्तों की तलवारों में, एकबार सारे महाराष्ट्र से टकराने की शक्ति है भाभी, विश्वास रखो !” और उसने म्यान से तलवार निकाल कर रानी के




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