कल्याण हिन्दी संस्कृति अंक भक्ति प्रेम | Kalyan Hindu Sanskriti Anka Bhakti Prem
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
97 MB
कुल पष्ठ :
1040
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर्गति-माशिनि हगो जय जय, काल-विनाशिनि काली जय जय |
उम्मा समा ब्रह्माणी जय जय, राघा सीता रुविमाणे जय जब ॥
साम्व सदाशिव, साम्य सदाशिव, सास्य सदाशिव, जेब शकर |
हर हर शंकर दुखहर सुख्कर अवन्तम-हर हर हर शकर ॥
हरे राम हरे राम शाम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे रृष्ण कृष्ण कृंप्ण हरे हरे ..
जय-जय हगो, जय था तारा | जब गणेश, जय शुम-आंगारा ॥|
जयति शिवा-शिव जानक्ि-रास । गोरी-शंकर सीता-राम ॥
जय रघुनन्दन जय सिया-राम । बज-गोपी-परिय राधेच्याम ॥
रघुपति गधब राजा. राम । पतितपावन सीता-राम ॥
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खपष्ठ के चित्र हिंद-संस्कातेका सरूप्
ध्यान धरे प्रणव-खरूप ज्योति अक्लका जो 'खस्तिक' सुखद शिवरूप वह पाता है ।
उर बीच सत्य आदि पोडश कमल-दल होते है भ्बुद्ध, चित्त शुद्ध चत जाता है ॥
भक्ति, प्रेम, समतए विराजती तभी हैं वहाँ, सब-आत्मद्शन! अनछूत सुहाता है ।
सगवद-धास! भे पिराम है परस गति हिंद-संस्कृतिकता भव्य रूप यह साला है|
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वार्पिक सूल्व । जय पक रवि चन्द्र जयति जय | सत्-चित्-आहँद घूमा जय जय ॥
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सद्रकअकासक शंक॑--धंनश्यसदास्त झालाच, गीताप्रेस, गोरखपुर पक
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