शिवसंहिता | Shiv Sahinta

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Shiv Sahinta by गोस्वामी श्री राम चरण पुरी - Goswami Shri Ram Charan Puri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमपथल: । (२१ ) में काठका नियम है इस हेतुसे आत्मा सर्वथा निश्चय परिपृण है ॥ «८ ॥ ह?-यस्मात्र विद्यत नाशः पचभृतइ था त्मकः ॥ तस्मादात्मा भव ज्नत्यस्तन्वाशा नभवत्खडडु ॥ ५९ ॥ टीका-यह जो मिथ्या पंचभूतरें इनसे उसका नाश नहीं है इसकारणसे आत्मा नित्यहे ओर यह निश्चय है कि उसका कभी नाश नहींहोता ॥ ५९॥ मूलं-यस्मात्तदन्योीं नास्तीह तस्मादेकों स्ति सवंदा॥ यस्मात्तदन्यों मिथ्या स्या- दात्मा सत्या भवत्खदु ॥ ६० ॥ टीका-जब दूसरा कुछ नहीं है तो एक वही स्वेद अद्वैत है जब उसके सिवाय अथोत्‌ उससे अन्य सब मिथ्याहे तो वही एक शुद्ध आत्मा सत्य है॥ ६० ॥ मूलं-अविद्याभूते संसारे दुःखनाशे सुर्ख यतः ॥ ज्ञानादाय॑तशून्य॑ स्थात्तस्मा- दात्मा भपत्सखु खत ॥ ६१ ॥ टीका-यह संसार अविद्यासे उत्पन्न भया है इस- के दुःखका नाश होनेपर सुख होताहै ओर ज्ञानसे




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