कदम्ब | Kadumba
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जि, ४ . ( २५०)
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निज जीवन- जीवनन्साथ लिये... .,
«। ,, जपमासने सच हिला करते हैं || 5
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ः * 7 » कव्िनकिय, सुगन््ध के तहुंओ से.
४5 यशा-चादरें यों हीं पिला करते है ॥
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रा, कवितासय रिध्र के आँगन में, ५
३ हु जो फलाधर की-सी कला करता है 1
रू . कवि ऐसा स्वतत्र पुजारी बना,
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दी सदा दूसरों का ही भला करता है ॥
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आग सदा सुल्गाते .हमीं हैं॥ रे
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बन “चन्द! कहीं, फही भूषण” हो,
+ * निमआण क्री वाजी लगाते हमी हैं ॥ -
कवि अपने देशवाल' का प्रतिनिधि शेता है, और आये समय की मदल-
शश परनाओं को ऋण अथवा म्रत्यक्षरूप से अपने यास्य में अपश्य अददित
करता है। शसी आन्तय शाप के आपोर पर आये चल्फ़र आलेचकगण उसके
एव्पकाल का निर्णय झरते हैं ) न्ज ब्क्
भीमोशननी ने मी अउने फार के सत्यामइ सम्राम बी उठ मइलएूर्ण
मना का उस्टेश किया है जिसमें महात्मा गाी ने गुद्ी मर निशस्पे सत्यामदिशों -
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