कदम्ब | Kadumba

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Kadumba by जगमोहननाथ अवस्थी - Jagmohan Nath Awasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जि, ४ . ( २५०) कै र मक स्क्ल् क्र निज जीवन- जीवनन्साथ लिये... ., «। ,, जपमासने सच हिला करते हैं || 5 #॒ फ़िर क्यों यह स्वारथी मूठ मलिन्द, 1 रे न मानते, दौड मिला करते हैं ः * 7 » कव्िनकिय, सुगन्‍्ध के तहुंओ से. ४5 यशा-चादरें यों हीं पिला करते है ॥ 1 श र रे * , करता है प्रकाश प्रदान जह़ान को।! 7 ५ दीपकसा जो जला करता है। अ उत्त भोर क्यों जीवन,का परवाना, ' लिये परवाना चला करता है! रा, कवितासय रिध्र के आँगन में, ५ ३ हु जो फलाधर की-सी कला करता है 1 रू . कवि ऐसा स्वतत्र पुजारी बना, र 1 दी सदा दूसरों का ही भला करता है ॥ (जि भाप से आप ही आता तिलोक, ' पि ,. भशोक हो 'शोऊ भगाते हमी हैं। ऐ | »... सदियों के प्रहुप्त देश में जाशति- दी. आग सदा सुल्गाते .हमीं हैं॥ रे +' भवचपन-मुक्त बने अहरी, | ' '*'. जग॒रोता जहाँ, वहाँ याते हमी 4 । बन “चन्द! कहीं, फही भूषण” हो, + * निमआण क्री वाजी लगाते हमी हैं ॥ - कवि अपने देशवाल' का प्रतिनिधि शेता है, और आये समय की मदल- शश परनाओं को ऋण अथवा म्रत्यक्षरूप से अपने यास्य में अपश्य अददित करता है। शसी आन्तय शाप के आपोर पर आये चल्फ़र आलेचकगण उसके एव्पकाल का निर्णय झरते हैं ) न्‍ज ब्क् भीमोशननी ने मी अउने फार के सत्यामइ सम्राम बी उठ मइलएूर्ण मना का उस्टेश किया है जिसमें महात्मा गाी ने गुद्ी मर निशस्पे सत्यामदिशों - ड़ ्क ऊँ तह जज,




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