राजस्थान में स्वतंत्रता संघर्ष | Rajasthan Men Swatantrata Sanghrsha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ 17
बरवाना चाहते थे ।/ दिल्ली की ओर बूच करने वाली इस कान्तिकारी
सेना मैं मरने मारने के लिए तत्पर लगभग चार हजार सेनिक थे । रेवाडी पर
विजय के पश्चात दिल्ली मे अग्रेजो की विजय से खिन्न चित इस सेना की
16 नवम्बर को नारनोल मे ब्रिगेडियर य्रेरार्ड के नेतृत्व वाली एक विशाल
अग्रेजी फौज से भिडन्त हुईं। जोधपुर लीजियन की पराजय से मारवाड-मेवाड
से श्रग्रेजी प्रभाव समाप्त करने की लालसा की इति श्री हो गई।
सब स्थानों की श्रोर से पृणतया आस्वस्थ हो जाने पर जब जनवरी 1858
में बम्बई से नई कुमक भी झा गई तब अग्रेजों ने पुन झउवा की तरफ मुह
करने का साहस क्या। कर्नल होम्स की कमान में वम्बई की पलटन और
12वी नेटिव इन्फेन्द्री ने श्रववा की घेरावन्दी की। जोधपुर महाराजा की
फौज भी इस प्रिटिस सेना की सहायता कर रही थी। 20 जनवरी को
भमासान युद्ध हुआ । चार दिन तक दोनो पक्षो की तोपें श्राग उगलती रही ।
उस समय प्रउवा फी रक्षा के लिये दुग मे बहुत कम सैनिक ही थे। 23 जनवरी
बी रात्रि को आकाश बादलों से ढक गया। निरतर वर्षा होने लगी।
क्रामदार तथा सहयोगियों के भ्रधिक श्राग्रह करने पर श्राजादी का यह दीवाना
खुशालसिंह गोला-वारी के बीच से निकल कर, सैनिक सहायता की झाशा से
भेवाड पहुच गया 1? शेष लोगो ने दुर्गे की रक्षाथ जबरदस्त युद्ध किया किन्तु
अग्नेजो की कई ग्रना विशाल सेना और जगी तोपखाना निर्णायक सिद्ध हुए ।
24 जनवरी को दुर्ग पर ब्विटिस सेना का अधिकार हो गया। फिर तो अग्रेजो
ने वहा यातनाञ्रों का ताडव ही कर दिया ।?7
बाद मे अग्रेजो ने खुशालसिंह पर मुकदमा चलाने का दिखावा भी किया
वितु सजा देने का साहस न जुटा सकने पर अन्त में परी बर दिया।
25 जुलाई, 1864 को झाजादी के लिये अलस जगाने वाले इस श्रमा का
उदयपुर मे स्वगवास हुआ । यरुगो-य्रुगो बे लिये इस स्वतन्त्रता सेनानी के
कृतित्त्व की छाप राजस्थानी जन मानस मे अकित रहेगी ।
कोटा मे 1857 वी क्रान्ति का महत्त्व अ्रपेक्षाइत इसलिये श्रधिव माना
जाता है वि लगभग छ महीनो तक कोटा पर क्रास्तिकारियों वा प्रधिवार
रहा। सारी जनता त्रान्ति समर्थथ वन गई। मारवाट भी श्रथिता हई।
मितम्पर मे बादशाह जफर कैद हो गया और लाल पिते पर प्रग्नेजी श्राधिपत्य
स्थापित हो गया तव भी कोटा के त्रान्तिकारी बेयद श्रपन ट्री बत पर श्रग्नेजो
मे लोहा लेते रहे। 1838 ई मे कोठा महारावयें सर्षस निर्मित शो”
User Reviews
No Reviews | Add Yours...