मन्वन्तर | Manvantara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
737 KB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मन्वन्तर
सरकृत वाचा मन कर्म भाव
की कहाँ समुज्ज्वल ज्योति रस्य ?
पट पद विगलित हो रही आह !
वह रीति नीति जग-जन प्रणम्य ।
जब तक तुम अपने को अपूर्ण
कद्दू चढते जाते थे सतके,
आचार विचारों में गति थी
पथ निर्देशक थे सोम अकीा
बहू दुर्घटना थी एक बडी,
जब हुआ तुम्दारा दृष्टिरोध।
हुमने नगण्य जग को माना
ये सर्वोपरि तुम निर्विरोध।
चढ़) अहभाव ही एक तुम्दारा
तुम्दे अतल' को ओर सींच
ले गया, 'पतन की ओर बढ़े
जा रदे तमी से आँस मींच।
उत्कष--सतत ।उत्कर्ष तुम्हें
पर पत सुग युग था सहज प्राप्त।
जो कुछ वाणी से निकल गया
दो गया चह्दी ,वेदोक्त, आप्त।
ह है पचोस
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