जानिसार अख़्तर और उनकी शायरी | Jan Nisar Akhtar Aur Unaki Shayari

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Jan Nisar Akhtar Aur Unaki Shayari by निसार अख्तर - Nisar Akhtar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जांनिसार अख्तर पिछली प्रीत हवा जब मुँह - अंधेरे प्रीत की बंसी बजाती है, कोई राधा किसी पनघट के ऊपर गुनग्रुनाती है, मुझे इक बार फिर अपनी मोहब्बत याद आती है ! उफ़क़ पर आस्माँ भुककर जमीं को प्यार करता है, मे मन्जरन एक सोई याद को बेदार करता है , मुझे इक बार फिर शअ्रपनी मोहब्बत याद आती है ! मिलाकर मुँह से मुँह साहिल से* जब मोजें गुजरती हैं, मेरे सीने में मुहृत की दवी चोटें उभरती हैं, मुझे इक बार फिर अपनी मोहब्बत याद श्राती है! चमकता एक तारा चाँद के पहलू में चलता है, सेरा सोया हुआ दिल एक करवट सी बदलता है, मुझे इक बार फिर अपनी मोहब्बत याद आ्राती है! जमीं जब डूबते सूरज की खातिर आह भरती है, किरन जब आस्माँ को इक विदाई प्यार करती है, मुझे इक बार फिर अपनी मोहब्बत याद श्राती है ! पिघलती हम्मग्र्‌ पर गिरते हैं जब ताक़ों में परवाने, सुनाता है कोई जब दूसरों के दिल के अफ़साने, भुझे इक बार फिर अपनी मोहब्बत याद झाती है ! ७ हि “8 8 0 ८ पट ३. झिंतिज पर ३. दृश्य ३. जगाता है ४. तट से २५




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