सन्निपात ज्वर चिकित्सा | Sannipat Jwar Chikitsa

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Book Image : सन्निपात ज्वर चिकित्सा  - Sannipat Jwar Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[९१३ ] निदानमें अर ० सहाधता मिलेगी और चिकित्सा काथ्ये सहज हो जायगा। लेखकने “शैग परीक्षा, मूत्र परीक्षा, रक्त परीक्षा, मर परीक्षा, थुक परोक्षा/#दि प्रकरण इसो उद्दे श्यसे लिखे हैं। समयामुसार इसकी अत्यधिक /आवश्यकता है ओर उसको पूर्ति इस पुस्तक द्वारा हुई हे यह निस्संकरौच व्यक्त किया जा सकता है । सन्निपात ज्वरकी चिकित्सामें परस्पर विरुद्ध गुणवाले दोष त्रय एकत्व रूप होनेसे दोष दृष्याँमें पारस्परिक विरोध होनेसे अत्यधिक कठिनताका अनुभव होता हे। अतः इसकी चिकित्साका वास्तविक ज्ञान प्रत्यक्ष अमुभव द्वारा ही होता है। लेखककों यह सोभाग्य स्व॒तन्त्र चिकित्सा तथा अस्पतालमें काय्थकरनेसे प्राप्त हुआ है और यही कारण है स्वानुभूत चिकित्सा प्रकरणमें छ्िष्टसे छिष्ट सन्निपात के असाध्य रोगियोंको किस प्रकार रोग मुक्त किया है यह ग्रहण करने योग्य है। खसम्निपात प्रकरणमें निदिष्ट क्रिया क्रममें, “वधनेनेक दोपस्थ क्षपणनोच्छितस्थ वा । कफस्थानानुपूठ्या वा सन्निपातं ज्वर' जयेत्‌ ॥ के अनुसार तथा सन्निपात ज्वरे पूव कुर्यादामकफापहम्‌ | पर्चाद्‌ इलेष्मणि संक्षीण शमग्रेत्वित्त मारुती | के आधार पर अथवा “वातस्यानुजयेत्पित्तः पित्तस्यानु मी तू कफ” आदि क्रमोंके आधारपर अनेक स्थल स्वानुभूत चिकित्सा सल्में मिलंगे जिससे स्पष्ट दोता है कि किस अवस्थामें किस प्रकारका क्रिया क्रम करना अभीष्ट दे। कहीं २ पर सुभ्रतोक्त शमयेत्पित्मेवादोी ज्वरेषु समबायिषु | दुनिरवार तरं बृद्ध ज्वरातेंषु विशेषतः” | का अनुकरण भी दृष्टिगत द्ोगा। त्रयोदश सन्निपातके प्रकरणमसें निर्दिष्ट शाख्रोक्त चिकित्स क्रमका प्रत्यक्षानुभव स्वकीयानुभवके प्रकरणमें विशिष्ट रुपसे प्राप्त दोगा। यदी पुस्तककी विशेषता है। पाश्चात्य




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