आराजि बोजि | Aaraji Boji

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Aaraji Boji by आचार्य रघुवीर - Aacharya Raghuveer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम पा5--स्वर मोंगोल भाषा में सात स्वर हैं । आ ६ उ डर ए ओ ओ। इनफा क्रम नागरी से भिन्‍न है । प्रत्येक स्वर के तीन रूप हैं---आदि, मध्य तथा अवसान । आदिझहूप मध्यरूप अवसानरूप आ | जो तक <््प-2 ए्‌ के ने का हनन डर जो +> व हर च् | ० ट उच्चारण & ६54... 04... ४४... लिखित भाषा में हस्व तथा दी का भेद नही दिखाया जाता । आ विवृत उच्चारण का द्योतक है, दीर्घत्व का नही | इसी प्रकार ए ओ आओ, जो संस्कृत में दी्घ माने जाते हैं, वे मोगोल मे कभी ह्ृस्व तथा कभी दीघ॑ उच्चारण किये जाते हैं । यद्यपि देवनागरी मे हमने छस्व इ उ उ का प्रयोग किया है, उच्चारणावस्था में वे कभी हस्व तथा कभी दीप॑ होते हैँ । इया इये मे आ तथा ए सदा दी उच्चारण होते हैं। आगा आगु एगे एग॒ मे द्वितीय स्वर आ उ ए पर सदा दीघं बोले जाते हैं । दीघ स्वर का निर्देश करमे के लिये मोगोल लिपि में कभी २ स्वर दो बार लिखा जाता है--- बुउ (त्तोप)-बू । यह निर्देश विरले शब्दों में किया जाता है । उ तथा ओ का उच्चारण विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है । ये तालव्य उ ओ कहे जा सकते हैँ। जिद्दा को इ की स्थिति अर्थात्‌ तालु मे रख कर ओप्ठो को उ की स्थिति में रखने अर्थात्‌ गोल करने से उ की ध्वनि बनती है । इसी प्रकार जिल्ा को ए वी स्थिति मे तथा ओष्ठों को ओ की स्थिति मे रखने से ओ की घ्वनि बनती है। , ओ का उच्चारण कभी सामान्य हिन्दी ओ भौर कभी हिन्दी “और में आने वाल़ी विवृत ओों ध्वनि के समान होता हैं। है, २७)




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