श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण | Shri Madwalmikiy Ramayan

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Shri Madwalmikiy Ramayan by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १८ ) ३३-रावणवा सौताकी दो मारी अवधि देना, सीताका उसे फ्टयारना क्र रायणक्रा छाई घमकाकर राश्षस्ियोंके निय-घ्रणमें रखकर छ़िर्यों सहित पुन मइलको लौट जाना २० २३-राक्षसियोंका सीताबीकों समझाना भ्श्३ २४-णीवाजीऊा राध्षध्ियोंद्री शन माननेसे श्नकार कर देना तथा! राइवतिर्याका ठ हैं मारने काटनेदी घमयी देना हि २५-राशपियोकी बात माननेस इनकार फरके शोक- संतप्त सीतावा वित्यप घरना ९२८ २६-सीताका करण विछाप तथा अपने प्राणोक्ों त्याग देनेका निश्चय फरना ९२९ २७-ब्रिजाका स्वष्फः सा्षणेंके विनाश और भीरधुनाथजशीवी पिजयवी तुम सूचना ९३३ २८-विल्वप करती हुई शीताका प्राणनयागके श्यि उयत द्ोना ९१६ २९-सीनाजीके हम शकुन ९३८ ३०-सीताजीसे बर्ताराप फरनेके विपयमें एनुमानजीया विचार करना र्३५ ६१-इनुमानजीका सीताको सुनानेव॑ छ्यि श्रीराम फपाता सन फरना श्र ३२-सीताजीऊा तक वितर्क र्ध्ड ३३-सीताजऔीया दनुमानशीकी अपना परिचय दसे हुए. अपने बनंगमन और अपइरणका बृत्तान्त बताना श्ड५्‌ ३४-सीताजीया इनुमानजीफे प्रति सदेह और उछरा सम्राघान तथा इनुमानजीके इ1स भीरामच द्वली के गुणेवा गान श्र ३५-सीताओ्ीके पूछनेपर इनुमानडीव औरामके शारीरिक चिह्०ें। और गुर्णाका घणन करना तथा नस-धानरपी मिश्रताफा प्रसज्ष सुनाकर सीताजी के मनमें विश्वास उत्पन्न फरना हि ३६-टनुमानजीवा सीताको मुद्रिझा देना; चौवफ्ा अश्रीगम कप मेरा उदार करेंगे! यह उत्सुक होकर पूछना तपा इनुमानजीका भ्रीरमके हीता द्िपयक प्रेमका बर्णन करके उ्े हण्स्दता देना द्प्पू ३७-छीतापा दनुमानजीसे शैरामयों शौम मुलनेगा आग्रइ, हनुमानजीबा सीतासे अपने साथ चल्नेका अभनुगेध तथा सोदाका अख्वीकार करा श्प्र ३८-शोवारीका इनुमानजीसो पहचानके रुपमें चित्रकूट पर्वतपर घटित हुए एक फौएके प्रसक्री सुनाना। सगयान्‌ भीरामनो शीत घुल्ा छानेते सगे अनुरध करना और चूड़ामणि देना ९६३ ३१९-चूड्रामणि लेबर जाते हुएए एनुमानजीस सीवाका श्रीसम आदिवों उत्साहित फरनेक॑ ऐये कदना तथा समुद्र तरणफे विषयमें श्ठित हुई सौतावों बानरोवा पराक्रम बतावर इनुमानजीका आश्वासन देना ९६८ ४०-सीताका भ्रीसमसे कहनेके लिये पुन संदेश देना तथा इसुमानजीता उहेँ आश्वासन दे उत्तर दिशायी ओर जना ९७१ ४१-एनुमानगीर द्वाय प्रमदावन ( अशाक याठिका ) वा पिध्यस ९७३ ४२-राक्षसियोफ्रे मुखसे एक पानरवे द्वारा प्रमदावनव वि इसका समाचार सुमकर रावणपा किंकर नामक राक्षसोंग्ों मेमना और दनुमान्‌ जा ट्वाय उन सब सद्दार श्ज््‌ ४३-इनुमानजीके द्वार चेल्यप्राशदका विजय तथा उसके रक्षक्ोका बंध ९७८ ४४-प्रइस्त पुत्र जम्तुमाडीया वध ९७९ 3४ >मात्रीउ सात पुर्मोदा बंध ९८० ४६-रायण पाँच सेनापतियोका बंध ९८२ इ७-ाावण पुत्र अशजुमाखा परशात्म और वध ९८४ ४८-इद्रजित्‌ू और इनुमानजीका सुद। उसके दिश्याप्फे बधघनमें वेंधकर इनुमानजीया रावणफ दरयारमें उपल्ित होना ब्ट्ट २४९-रावणक प्रभावशाली स्वस्पकों देखकर इनुमानजीक मनमें अनेक प्रसरके विचार्रक्ा उठना द्र्श्‌ ७०-रवणका प्रद्सतव द्वाय दनुमानजीसे छट्टामें आमैया कारण पुछवाना और एनुमायवा अपने को भीएमद् दूत यताना ९९५




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