श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण | Shri Madwalmikiy Ramayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
990
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १८ )
३३-रावणवा सौताकी दो मारी अवधि देना,
सीताका उसे फ्टयारना क्र रायणक्रा छाई
घमकाकर राश्षस्ियोंके निय-घ्रणमें रखकर छ़िर्यों
सहित पुन मइलको लौट जाना २०
२३-राक्षसियोंका सीताबीकों समझाना भ्श्३
२४-णीवाजीऊा राध्षध्ियोंद्री शन माननेसे श्नकार
कर देना तथा! राइवतिर्याका ठ हैं मारने काटनेदी
घमयी देना हि
२५-राशपियोकी बात माननेस इनकार फरके शोक-
संतप्त सीतावा वित्यप घरना ९२८
२६-सीताका करण विछाप तथा अपने प्राणोक्ों त्याग
देनेका निश्चय फरना ९२९
२७-ब्रिजाका स्वष्फः सा्षणेंके विनाश और
भीरधुनाथजशीवी पिजयवी तुम सूचना ९३३
२८-विल्वप करती हुई शीताका प्राणनयागके श्यि
उयत द्ोना ९१६
२९-सीनाजीके हम शकुन ९३८
३०-सीताजीसे बर्ताराप फरनेके विपयमें एनुमानजीया
विचार करना र्३५
६१-इनुमानजीका सीताको सुनानेव॑ छ्यि श्रीराम
फपाता सन फरना श्र
३२-सीताजीऊा तक वितर्क र्ध्ड
३३-सीताजऔीया दनुमानशीकी अपना परिचय दसे
हुए. अपने बनंगमन और अपइरणका बृत्तान्त
बताना श्ड५्
३४-सीताजीया इनुमानजीफे प्रति सदेह और उछरा
सम्राघान तथा इनुमानजीके इ1स भीरामच द्वली
के गुणेवा गान श्र
३५-सीताओ्ीके पूछनेपर इनुमानडीव औरामके
शारीरिक चिह्०ें। और गुर्णाका घणन करना तथा
नस-धानरपी मिश्रताफा प्रसज्ष सुनाकर सीताजी के
मनमें विश्वास उत्पन्न फरना हि
३६-टनुमानजीवा सीताको मुद्रिझा देना; चौवफ्ा
अश्रीगम कप मेरा उदार करेंगे! यह उत्सुक
होकर पूछना तपा इनुमानजीका भ्रीरमके
हीता द्िपयक प्रेमका बर्णन करके उ्े
हण्स्दता देना द्प्पू
३७-छीतापा दनुमानजीसे शैरामयों शौम मुलनेगा
आग्रइ, हनुमानजीबा सीतासे अपने साथ
चल्नेका अभनुगेध तथा सोदाका अख्वीकार
करा श्प्र
३८-शोवारीका इनुमानजीसो पहचानके रुपमें
चित्रकूट पर्वतपर घटित हुए एक फौएके
प्रसक्री सुनाना। सगयान् भीरामनो शीत घुल्ा
छानेते सगे अनुरध करना और चूड़ामणि
देना ९६३
३१९-चूड्रामणि लेबर जाते हुएए एनुमानजीस सीवाका
श्रीसम आदिवों उत्साहित फरनेक॑ ऐये कदना
तथा समुद्र तरणफे विषयमें श्ठित हुई सौतावों
बानरोवा पराक्रम बतावर इनुमानजीका
आश्वासन देना ९६८
४०-सीताका भ्रीसमसे कहनेके लिये पुन संदेश
देना तथा इसुमानजीता उहेँ आश्वासन दे
उत्तर दिशायी ओर जना ९७१
४१-एनुमानगीर द्वाय प्रमदावन ( अशाक
याठिका ) वा पिध्यस ९७३
४२-राक्षसियोफ्रे मुखसे एक पानरवे द्वारा
प्रमदावनव वि इसका समाचार सुमकर रावणपा
किंकर नामक राक्षसोंग्ों मेमना और दनुमान्
जा ट्वाय उन सब सद्दार श्ज््
४३-इनुमानजीके द्वार चेल्यप्राशदका विजय तथा
उसके रक्षक्ोका बंध ९७८
४४-प्रइस्त पुत्र जम्तुमाडीया वध ९७९
3४ >मात्रीउ सात पुर्मोदा बंध ९८०
४६-रायण पाँच सेनापतियोका बंध ९८२
इ७-ाावण पुत्र अशजुमाखा परशात्म और वध ९८४
४८-इद्रजित्ू और इनुमानजीका सुद। उसके
दिश्याप्फे बधघनमें वेंधकर इनुमानजीया
रावणफ दरयारमें उपल्ित होना ब्ट्ट
२४९-रावणक प्रभावशाली स्वस्पकों देखकर
इनुमानजीक मनमें अनेक प्रसरके विचार्रक्ा
उठना द्र्श्
७०-रवणका प्रद्सतव द्वाय दनुमानजीसे छट्टामें
आमैया कारण पुछवाना और एनुमायवा अपने
को भीएमद् दूत यताना ९९५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...