श्री सिद्धचक्र विधान | Shri Siddh Chakr Vidhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसमे भावपूर्णता के साथ-साथ कवि की काव्यकला भी अपने प्रौढ़रूप मे
सामने आयी है। यह ब्रज भाषा मे लिखा गया है। कवि की भाषा भावानगामिनी
सरल और माधुर्यगुणयुक्त है। इसमे ४७ प्रकार के छन््दो के प्रयोग से ज्ञात होता
है कि कवि छन््दशास्त्र के विशेष ज्ञाता थे। उपमा और रूपक अलकारो के
स्वाभाविक प्रयोग ने काव्यगत सौन्दर्य द्विगुणित कर दिया है। विधान मे सर्वत्र
भक्तिरस व्याप्त होकर मानो सिद्ध भगवन्तो से साक्षात्कार ही कर रहा है।
इस प्रकार अनेक दृष्टिकोणो से यह विधान कबि की श्रेष्ठतम कृति है। इस
विधान मे आठ पजने हैं। प्रत्येक पजन के अध्यों की सख्या उसके पहले की पजन
से द्विगुणित है। इस क्रम मे प्रथम पूजज़ मे आठ, दूसरी मे सोलह, तीसरी मे
बत्तीस, चौथी मे चौसठ, पॉचवी मे एक_सौ अटठाईस, छठवी मे दो सौ छप्पन
सातवी मे पाँच सौ बारह, और आठवी मे एक हजार चौबीस. अर्ध्य है।
_” यद्यपि अष्टान्हिका महापर्व के साथ-साथ दशुलक्षण महापर्व भी वर्ष मे
तीन बार आता है, तथापि अष्टान्हिका महापर्व इस अर्थ मे दशलक्षण महापर्व
से अधिक भाग्यशाली है कि वह वर्ष मे तीन बार मनाया भी जाता है, जबकि
दशलक्षण महापर्व केवल एंक बार। अभी तो बहत से जैन भाइयो को यह भी
पता न होगा कि दशलक्षण महापर्व भी वर्ष मे तीन बार आता है।
अष्टान्हिका महापर्व के साथ सिद्धचक्रविधान का ऐसा सहज सबध
स्थापित हो गया है कि बिना सिद्धचक्रविंधान कराये यह महसस ही नही होता
कि हमने अष्टान्हिका महापर्व मनाया भी है। यद्यापि इस धारणा मे यह दोष
उत्पन्न हो गया है कि किसी जैनी भाई को सिद्धचक्रविधान कराने का भाव
उत्पन्न हुआ हो तो वह अष्टान्हिका के आने की राह देखता है। वह सोचता है
कि कब अष्टान्हिका आये और सिद्धचक्रविधान कराया जाये, भले ही तब तक
उसका विधान कराने का भाव ही न रहे।
अत यह ध्यान रखना चाहिए कि यह विधान कभी भी कराया जा सकता
है। अरे | यह जब कराया जायेगा, तभी आठ दिन का पर्व हो जायेगा, भले ही
उसे अष्टान्हिका महापर्व नाम न मिले।
इसके पूर्व इस विधान की विभिन्न प्रकाशन सस्थाओ से हजारो प्रतिया
प्रकाशित हो चुकी हैं। स्व पूज्य कानजी स्वामी के देहावसान के उपरान्त
सोनगढ़ मे सिद्धचक्र विधान के आयोजन के समय इसकी ११०० प्रतिया
प्रकाशित की गईं जो हाथो हाथ बिक गईं। इसके पश्चात् १००० प्रतियो का
द्वितीय सस्करण टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपर द्वारा प्रकाशित हुई परन्त॒ वे भी
अतिशीघ्र समाप्त हो गई। मार्च ८४ मे यवा फैडरेशन द्वारा ५००० प्रतिया
प्रकाशित की गई जो २ वर्ष मे ही समाप्त हो गई। इसका चतर्थ सस्करण
३२०० की सख्या मे प्रकाशित किया गया जो हाथो-हाथ बिक गया फलत यह
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