विदुर नीति | Vidur Neeti

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Vidur Neeti by गोकुलचन्द दीक्षित - Gokulachand Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) 'कामनद की नीति सार, पद्बमतन्त्र, शुक-नीति, कशिक-नीति ' आदि २ अनेक नीति विद्या के ग्रन्थ उपलब्ध होते हुए भी अपनी नीति के आश्रित जनपदों के जीवन न रहने से - उन्हें बड़ी २ विषस समस्याओं का खुल्लकावा कठित हो 'गयाहै इसका खेद है, विदुर-नीति उस समय की. है, कि जब से आय ' संस्कृति के पतन का सूत्रपात हुआ है । इसलिये हमको इससे लाभ उठाता चाहिये श्ौर अपना जीवन एक नैतिक जीवन बनाना चाहियें। प्राक्षस्य सूखस्म चकम योगे, समत्व मभ्येति तनुनवुद्धिः ॥ क्ञासी और सुर्खों के शरीर कर्म करने में तो एक से होते हैं, परन्तु. केवल बुद्धि में भिन्नता होती, है । यह विशेष बुद्धि नीति ग्रन्थों के पढ़ने से ही प्राप्त होती है, वह बुद्धि शुक्र नीति अनुसार यदि प्राप्त हो सकती है, तो-- ' संबलीक व्यवद्ार स्थिति्नीत्या बिना, नहिं। यथा .,शनैविदी देहस्थितिने स्याद्धि देहिनाम्‌॥ . बिना नीति के लोक व्यवहार नहों सघ सकते, जैसे बिना भोजन के शरीर नहीं रह सकता'। अतः हसको नीति भअन्थों. के स्वाध्याय में कभी भी प्रमाद न करना 'चाहिये,। यही हमारी नीति-बुद्धि वर्धेक है। कुसमय पर सच्चे मित्र के समान परामश देती है और दुःखों से पार कर देती है । शारदी पूर्णिमा सं० १६६२ विद्वानों का अनुप्नाह्य-- ह '. राजा मन्डी, आगरा गोकुलचन्द दीसचित “चर




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