करकंड चरिउ | Karakand Chariu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
बीच डाल दिया। उसके साहस से प्रसन्न होकर वे दोनो भी मनुप्य का रूप धारण
कर उसके साथ दोगये। एक राज़ा ने उन्हे देखा और वह उस स्त्री के रूप पर मोहित
दो गया। उसने यबक को पक कुए में ढकेल दिया, और उस खत्री से प्रेम करना चाद्दया ।
इतने में ही उसे एक सपे ने डस लिया ओर वह मर गया। स्त्री ने उस यवक को कुए से
निकाला और पश्चात् उसका मत राजा क स्थान पर राज्याभिषेक होगया। सखुद्शना देवी
शकुन का यद्द फल देकर चली गंइ।
आठवीं अवान्तर कथा अरिद्मन की है, जिसे पद्मावती देवी न करकंड के समुद्र में
विद्याधरी द्वारा हरण किये जाने क शोक से व्याकुल रतिवेगा को छुनाया था (८, १-१६)।
अरिदमन उज्चेन का राजा था | एक विद्याधर न सुआ का रूप धरकर अपने को पक ग्वाल
द्वारा उस राज़ा के हाथ बिकवा दिया । सुआ न राजा का बताया कि उसके मंत्री क पास
एक बड़ा सुंदर ओर प्रतापी घोडा है। राजा ने मंत्री स इसे प्राप्त किया और सखुआ सहित
उसपर सवार हुआ । एक चाब॒ुक मारी कि घड़ा उड़कर समुद्रपार एक द्वीप पर जा पहुंचा।
वहां राजा ने बहुतसी कनन््याओं को जलक्रीडा करते हुए देखा और उनमें प्रधान रत्नलेखा से
उसने विवाह कर लिया । एक दिन रत्नलेखा ने कहा कि में आपका पितृग्रृह देखना चाइती
हूं। तब राजा ने एक नोका निर्माण कराई और राजा-रानी, सुआ और घोड़ा सहित, उस पर
बेठ कर चल दिये | विपरीत वाय के कारण नाव एक उज़ाड ्ाप पर जा पहुंची । वहां उन्हे
रात-बसरा करना पड़ा। रात्रि को दी नाव को कोई चुरा ले गया । तव सए की सलाह से
राज़ा ने लकडी काट ओर उन्हे बांधकर एक डोगी बनाई और वे यारों उसपर बैठकर चले ।
समुद्र की लहरों से डोंगी के बन्धन टूट गये और वे चारों विछुड़ गये। सुआ उड़ गया
थोड़ा कही गया, राजा कोकन पहुंचे ओर रानी खंबायत बन्द्र पर पहुंची । वहां उसे एक
कुट्टिनी के यहां आश्रय मिला । उसने यह प्रण किया कि जो कोई मुझे सार-पांसे खेलने में
दरा देगा उससे ही में प्रेम करुंगी। किन्तु उससे कोई भी पुरुष नहीं जीत पाया । एक दिन
वह खुआ उड़कर उसके घर आगया ओर उनकी पहिचान हो गई। उसकी द्यृतक्रीडा की
कीर्ति चारो ओर फैल गई । कोकन में अरिद्मन ने भी समाचार सखुने। वे आये | खेल हुआ
और उन्होंने रत्नलेखा को हरा दिया। रत्नलेखा बहुत व्याकुल हुई, किन्तु इसी क्षण उनकी
परस्पर पहचान हो गई जोर थे मिलकर बहुत खुशी हुए। एक दिन एक ठक्क वहां घोड़े
देखने छाया | उनमे अरिद्मन ने अपना घोड़ा पहचान कर खरीद लिया । इस प्रकार वे सब
बिछुड़े प्रेमी एक वार फिर मिलकर अपने घर आनन्द से आगये।
इस कथा के प्रारम्भ में जो सुए की कहानी है वह एक प्रकार से स्वतंत्र ही है
( ८, ३-८ )। पक विद्याधघर सुए का रुप धर कर उज्जेम के फस पर्चत पर रहता था। उसने
राजा के मंत्री कौ धोड़ी को पर्धतपर यरते व उले गर्भवती दोती हुई देखा था। एक दिन
उसने पक रबाल से कहा कि मुझे ले थलू मोर पांच सो खुब्ण शद्ामों मे राजा को बेय दे ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...