शासन - यन्त्र | The Machinery Of Government
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
इलयास अहमद - Ilayas Ahamad,
बाबूलाल श्रीवास्तव इ Babulal Shrivastav,
विष्णुदत्त मिश्र - Vishnudatt Mishr
बाबूलाल श्रीवास्तव इ Babulal Shrivastav,
विष्णुदत्त मिश्र - Vishnudatt Mishr
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
62.87 MB
कुल पष्ठ :
481
श्रेणी :
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इलयास अहमद - Ilayas Ahamad
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बाबूलाल श्रीवास्तव इ Babulal Shrivastav
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विष्णुदत्त मिश्र - Vishnudatt Mishr
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शक रासन- की कसौटी क़ानून के प्रति श्रद्धा श्ौर अरस्तू के वर्गीकरण की नेतिक घम है क्योंकि राज्य एक नेलिक समाज है जिसका अस्तित्व सदुगुण की चर्भन्निति के लिये है । इसलिये पूरप॑ रूप से शात्मिक विकास को कार्यीन्वित करने वाले राज्य साधारण शर इस उद्देश्य से दुरवर्त्ती श्रसाधारण था निकृष्ट कददलाये । स्वयं अरस्तू का वर्गीकरण के विषय में निम्नलिखित विचार है । (30 यह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण राज्य में शासन या. प्रघन्घ के लिए एक से प्रधान शक्ति की आवश्यकता है । यह सबं प्रधान शक्ति निवाय रूप से एक या कुछ अथवा बहुत मनुष्यी के हाथों में होती हैं । जब राज्य सब साधारण के हित लिये श्रपनी शक्ति का प्रयोग करत हैं तब थे सूब्यवस्थित कहलाते हैं । श्रौर जब शासकों के स्वाथे के लिए चाहे उनकी संख्या प्फ हो. कुछ ही अथवा वहुत इस शॉष्ति का प्रयोग होता है तो राज्य कुल्यवस्थित होत हैं | क्योकि हमको यह मानना पढ़ेंगा कि जो समाज के अंग द वे या ता नागरिक नहीं हैं नहीं तो उनको शासन से लाभ रठान का अवसर मिलना चाहिये । साधारणतः जन साधारण के हित के लिए एक व्यक्ति के राज्य को एकतन्त्र झीर एक से अधिक किन्तु केवल कुछ हा व्यक्तियों के राज्य ४ शासन + सुयोग्य नार्गारकां के हाथों में होने श्रथवा नगर निर्वासियों के लिए अत्यन्त हितकर होने के कारण कुललीननतन्त्र कहते हैं । जब नागरिक एक बड़े पैमाने पर जनता के हित के लिए शासन करते हैं तब इसे बहुतन्त्र (९७116) कहते हूं + इनके अष्ट रूप हैं कठोर शासन एकतन्त्र का झल्प-जन-तन्त्र कुलीन-तन््र का झौर प्रजातन्त्र बहुतन्त्र का । कठोर शासन का उद्देश्य केवल एक व्यक्ति का स्वार्थ छाल्प जनतन्त्र का केवल घनिक वर्ग का झौर श्रजातन्त्र का केवल सिधघन बर्गे का स्वाथ होता है परन्तु किसी के दृष्टि में सावेजनिक हित नहीं है / इस प्रकार श्रस्तू ने विभिन्न शासनों के उद्देश्य पर भी बिचार किया है । सावजनिक दवित का ध्यान रखने वाले शासन साधारण और व्यक्तिगत बलबवूद्धि के लिये संचालित शासन निकृष्ट कहलाते हैं। उसके बिचार में एक तस््त्र कुज्लीन तन्त्र और बहुतन्त्र क्रमश सब जनसाधघारण के हिंत के लिये एक व्यक्ति का शासन कुछ ब्यापक हित के लिये बंशागत गुणों से युक्त कुछ व्यक्तियों का शासन तथा सबंसाधारण की मलाई के लिये मध्यम वगे का शासन हैं । इसी प्रकार कठोर शासन-छल्पनजन-तन्त्र तथा प्रजातन्त्र शासनों से उसका तात्पय क्रमशः व्यक्तिगत बल-बृद्धि के लिये तथा निधन वगे के स्वाथें के लिये शासनों से हैँ | लिलकवविवॉमबत व. रस नवएकिकरफलयसकररलातरकमश हो. लिप सवदमाकारतननर के रै प9० 2०0८5. ०9. टैएंडप06 . टिफ्डाप्रप्प्याड . निज 0... 78-79. आरस्टाटेल को पालिटिक्स पुष्ठ ७८०७६ । र--ब्लत्ट्शली (810७७) का कथन है कि प्रजातन्त्र निर्धन या झशिद्धित जनता का मनमानी शासन (0८9102780%) कहां जा सकता है 16 फिब्णाए 0 पट उदधाक 2. उठ) इत संस्करण्थ में खावजनिक दित का ध्यान रखने वाल रावत का नाम शिवय दिप। हे |
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