महाभारत अनुशासन परवा | Mahabharat Anushasan Parva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
69 MB
कुल पष्ठ :
989
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अनया छन्द्यघानों5हई साथया लघ ससम |
तैस्तैरतिथिलत्कारेराजेवेषसघा ह्॒दं सम! ॥६४॥
है सत्तम | तुम्हारी इस भायाने अपना दृह मन छश्के अमेझ प्रकारके अतिथि सत्दारोपि
मेरी इच्छा पूर्ण करनेका वचन दिया है॥ ९४ !!
अनेन विधिना सेय समानचति झु मानना ।
अनुरूप॑ यदत्राद्य तद्भवान्वक्तुलएऐंलति 18:
इसी बिधिसे यह वही शुभानवा सेरा झुंसाव कर्ती हे; इस विपयर्स दूसश जो कुछ काय
तुम्हें उपयुक्त बोध हो, तो तुम वह कह सकते हो ॥| ६७॥
कूटमुद्दरहस्तस्तु सत्युरत दे समनन््ययथात्।
हीनप्रतिज्ञमज्ैन वधिष्धाक्षीति चिन्तथल् ॥ ६६ ॥
£ अतिधित्रतका परित्याग करके यह झपद्ी प्रतिज्ञासे अष्ट होगा और में उसका यहीं वध
करूंगा, . ऐसा विचार कर मृत्यु देव छोहदण्ड धारण करके उस पुरुषक़े पीछे आकर खडे
हो गये ॥ ६६॥
सुद्शनस्तु सनसा ऋछर्मणा चछुषा गिरा ।
त्यक्तेष्यरत्यक्तघन्णुश्यल रतयमानाजन्रदादि दस ॥ ९७ ॥
सुदर्शन ऐसा बचन सबके मन, कर्म, नेत्र ओर वचनसे भी ईपा तथा क्रोधफा परित्णाग
करनेके कारण हंसकर यह बचन बोढे ॥ ८७ ॥|
सुरतं तेडस्त विप्राए छ प्रीधिएि परमा सन्त ।
गहस्थर॒थ ६४६ छ्ाईइएजथा। समाधादहिथिए्जअस | ९८ ॥|
है वेप्रवर ! आपका सुरत हो, सुझे उम्ससे परण प्रसन्नता छोणी; छारण यह है कि घरपर
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आय आताथका सरकार करना ही यृहस्पका परम घमं है ॥ ६८ ॥
0७ (७ ८४५
नान्घस्तसलाल्परो घन हलि प्राहलेताएँफे (॥८६९॥ ५
जिम गृहस्थके घरमें अतिथि आछूरए पूजित होते मषन रश्ता है, उहसे बढके दूसरा झोई
भी श्रेष्ठ धर्म नहीं है, ऐसा पण्डित लोग कहां करते है ॥ ६९ ॥
प्राणा हि सम दाराख यच्चास्यद्वियते ८सु ।
जआतापब्यों मथा देयासिलि से प्रतलाहिएक ॥ ७४० ||
भरा प्राण, पत्नी और दूसरा जो कुछ घर है, वह सब अतिथियोंदोीं दाल करूंगा, यहां
मेरा सहृलिपत व्रत हूं ॥| ७० ॥
अतिथि; पूज़ितों घल्य गृहृस्थरुण तु गड्छलि
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