महाभारत अनुशासन परवा | Mahabharat Anushasan Parva

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Mahabharat Anushasan Parva by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ्रध्याय २ | अनु धासतपर्थ श्र 3कननीक सन. ०-०+०+ के >> जरणपरीजनलीक 3] नीली 2 क>० ३०३०० 7५ कक ५० जनरल 3५०3 मीन>ताज-ट+नरी+ ०-७० 3नन-3न>> जम 3> आम +>8-3 २५. २०.००:+०--' अनया छन्द्यघानों5हई साथया लघ ससम | तैस्तैरतिथिलत्कारेराजेवेषसघा ह्॒दं सम! ॥६४॥ है सत्तम | तुम्हारी इस भायाने अपना दृह मन छश्के अमेझ प्रकारके अतिथि सत्दारोपि मेरी इच्छा पूर्ण करनेका वचन दिया है॥ ९४ !! अनेन विधिना सेय समानचति झु मानना । अनुरूप॑ यदत्राद्य तद्भवान्वक्तुलएऐंलति 18: इसी बिधिसे यह वही शुभानवा सेरा झुंसाव कर्ती हे; इस विपयर्स दूसश जो कुछ काय तुम्हें उपयुक्त बोध हो, तो तुम वह कह सकते हो ॥| ६७॥ कूटमुद्दरहस्तस्तु सत्युरत दे समनन्‍्ययथात्‌। हीनप्रतिज्ञमज्ैन वधिष्धाक्षीति चिन्तथल्‌ ॥ ६६ ॥ £ अतिधित्रतका परित्याग करके यह झपद्ी प्रतिज्ञासे अष्ट होगा और में उसका यहीं वध करूंगा, . ऐसा विचार कर मृत्यु देव छोहदण्ड धारण करके उस पुरुषक़े पीछे आकर खडे हो गये ॥ ६६॥ सुद्शनस्तु सनसा ऋछर्मणा चछुषा गिरा । त्यक्तेष्यरत्यक्तघन्णुश्यल रतयमानाजन्रदादि दस ॥ ९७ ॥ सुदर्शन ऐसा बचन सबके मन, कर्म, नेत्र ओर वचनसे भी ईपा तथा क्रोधफा परित्णाग करनेके कारण हंसकर यह बचन बोढे ॥ ८७ ॥| सुरतं तेडस्त विप्राए छ प्रीधिएि परमा सन्त । गहस्थर॒थ ६४६ छ्ाईइएजथा। समाधादहिथिए्जअस | ९८ ॥| है वेप्रवर ! आपका सुरत हो, सुझे उम्ससे परण प्रसन्नता छोणी; छारण यह है कि घरपर 33 आय आताथका सरकार करना ही यृहस्पका परम घमं है ॥ ६८ ॥ 0७ (७ ८४५ नान्घस्तसलाल्परो घन हलि प्राहलेताएँफे (॥८६९॥ ५ जिम गृहस्थके घरमें अतिथि आछूरए पूजित होते मषन रश्ता है, उहसे बढके दूसरा झोई भी श्रेष्ठ धर्म नहीं है, ऐसा पण्डित लोग कहां करते है ॥ ६९ ॥ प्राणा हि सम दाराख यच्चास्यद्वियते ८सु । जआतापब्यों मथा देयासिलि से प्रतलाहिएक ॥ ७४० || भरा प्राण, पत्नी और दूसरा जो कुछ घर है, वह सब अतिथियोंदोीं दाल करूंगा, यहां मेरा सहृलिपत व्रत हूं ॥| ७० ॥ अतिथि; पूज़ितों घल्य गृहृस्थरुण तु गड्छलि




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