चन्द्रप्रभ चरितं | Chandraprabh Charitam

Chandraprabh Charitam by प्रभा पाटनी - Prabha Patni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वीरनन्दी - Veernandi

Add Infomation AboutVeernandi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्तावना १३ लुझ्चन करते हैं । देवेद्र और देव मिलकर तप कल्याणकका उत्सव मनाते हैँ, और उन केशोको मणिमय पात्रमें रखकर क्षीरसागरमें प्रवाहित करते हैं । पारणा--नलिनपुर में राजा सोमदत्ता के यहाँ दे पारणा करते हैं। इसी अवसर पर वहाँ पाँच आदचर्य प्रकट होते हैं । कैवल्य प्राप्ति--घोर तप करके वे शुक्लष्यानका अवलूम्बन लेकर [ फाल्गुन कृष्ण ससमी के दिन ] कैवल्य--मूर्णज्ञानकी प्राप्ति करते हैं । समवसरण--कैवल्य प्राप्िके पश्चात्‌ इन्द्रका आदेश पाकर कुबेर साढे आठ योजनके विस्तारमें बर्तुलाकार समवसरणका निर्माण करता हैं। इसके मध्य गन्ध कुटठीमें एक सिंहासन पर भ० चन्द्रप्रभ विराज मान हुए और चारो ओोर वर्तुलाकार बारह प्रकोष्ठोमें क्रम गणधर आदि । दिव्य देशना--इसके अवन्तर गणघर (मुख्य शिष्य) के प्रवका उत्तर देते हुए भगवान्‌ चन्द्रप्रभ ने जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, सवर, निर्जरा और मोक्ष--इन सात तत्त्वोके स्वरूपका विस्तृत निरूपण ऐसी भाषामें किया, जिप्ते सभी श्रोता आसानीसे समझते रहे । गणधरादिकों की संख्या--दस सहज, दस केवल ज्ञान कृत और घौदह देवरचित अतिशयो तथा भाठ प्रातिहायसि विभूषित भ० चन्द्रप्रके समवसरणमें तेरानवै गणधर, दो हजार कुशाग्रवुद्धि पूर्वधारी, दो लाख चारसो' उपाध्याय, भाठ हजार अवधिज्ञानी, दस हजार केवडो, चौदह हजार, विक्रिया वहद्धि धारी साधु, आठ हजार मन पर्ययज्ञानी साधु, सात हजार छ सौ वादी, एक छाख अस्सी हजार ) आधि- काएँ,; तोन छाख सम्यर्दृष्टि श्रावक और पाँच छाख * ब्रतवती श्राविकाएँ रही | यत्र-ततन्न आयक्षेत्रमें धर्मामुतकी वर्षा करते हुए भ० चन्द्रप्रभ सम्मेदाचल ( शिखर जी ) फे शिखर पर पहुँचते हैं। भाव्रपद शुक्ला _ ससमीके दिन अवशिष्ट चार अघातिया कर्मोंको नष्ट करके दस छांख पूर्व प्रमाण आयुके सम्माप्त होते ही वे मोक्ष प्राप्त करते हैं । १ हरिवंश० ( ७२४,२४० ) में और त्रिषष्टिधचछापु० ( २९८,६६ ) में पुरका नाम 'वष्म खण्ड दिया है, एव पुराणसा० (८६,६२) में 'नलितखण्ड' । २ हरिवश० ( ७२४,२४६ ) में और पुराणसा० (८६,६२) में राजाका नाम 'सोमदेव' दिया है। ३ चन्द्रभमचरितमू्में मिति चही दी, अत, उ० पु० (५४,२२४) के आधार पर दी है। चन्द्रप्रभचरितमुर्मे चन्द्रपभ भसगवान्‌के जन्म और मोक्ष कल्याणकोकी मितियाँ दी हैं, शेष तीच कल्याणकों की नहीं। ४ त्रिषष्टिशलाका पु० ( २९८,७५ ) में समवसरणका विस्तार एक योजन लिखा है। ५ तिलोयप० (४,११२० ) में पृवंधारियोकी सख्या चार हजार दी है। ६. तिलोयप० (४,११२०) में उपाध्यायोंक्ी संडघा दो छाख दस हजार चारसौ दी है। ७. विलछोयप० ( ४,११२१ ) में अवधिज्ञानियोंकी सख्या दो हजार छिखीं मिलती हैं। ८ तिलोयप० ( ४,११२१ ) है केवलियोकी संख्या अठारह हजार दी हैं। ९. तिलोयप० (४,१६२१) में विक्रिया ऋद्धिधारियोकी सल्या छ, सो दी है, भौर हरिवंश० (७३६,३८६) में दस हजार चारसौ | १०, तिल्‍ोयप० (४.११२१ ) में वादियोकी सख्या सात हजार दी है। ११, तिलोयप१० (४,११६९ ) में आयिकाओोंकी सख्या तोच राख अस्पी हजार दो है और पुराणसा० (८८,७५) में भी यही सख्या दृष्टियोचर होती है । १२, पुराणसा० (८८,७७) में ्राविकाओंकी सख्या चार लाख एकानवे हजार दी है। तरिषष्टिशछाकापु० मे दी गयी सस्याएँ इनसे प्राय भिन्न हैं। १३, उ० पु० ( ५४,२७१ ) में चन्द्रप्रभके मोक्षकल्याणकृकी सिति फाल्यून धुक्छा सप्तमो दी गयी है, पुसाणसा० (९०,७९) में मिती नहीं दी गयी केवछ ज्येष्ठा नक्षत्रका उल्लेख किया हैं ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now