श्रीरामचरितमानस भाग - 1 | Ramacharitamanas Bhag - 1

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Ramacharitamanas Bhag - 1  by सीताराम मिश्र - Sitaram Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के ३३ अयोष्पाफाण्दम्‌ घास्मानुगायिता में प्रतिना्थ निर्दहण उपरोक्त भौपाईम॑'सदविधिः फलका सीसरा दात्पय यह भी ऐ फि राजा पिधिफा अनुसरण क हुए अपनी सत्यर्ंपतापे घठ पर भीरामफो राज्यासिपेफ फरना चाहते हूँ। पनफे सामने उद्घधापो् फी रिः हरी हे। प्पापरपिधिपे समन्‍्ययफ्रों बथायत्‌ न जाननेपर उनयी अयस्था फिंफसस्यपिमूद जैसी एक शरप फैफेयोफे साथ पियाद फरने पे अयसर पर फैपेयीसुत भरतफो राम्य देने फी प्रतिज्ञा ( जैसा भौ १दोदा “९ पी स्याम्स्यार्म छयुट फिया गया है) दूसरी तरप समस्त आत्मगुणसम् दा हि सुर न पदफे योग्य श्रीरामपी राज्याभिषेषः फ्रने फा अपना निणंय है। इसके राजाको पृषरापरपिधिफा समन्‍्दय फरना दै। इस समन्ययम इतिफतल्यता फा भीमांसाफे द्वारा नि परफे दी राज़ाने श्रीरा मपा राम्यासिपेफ निर्णीद पिया ऐ। जिससे सस्‍्पमसंघता पर भी आच न आये ३ शारप्रधिपरीत फाय भी न दो । भीरामपों राज्य का छोम नहों हे और भरत राग्य लेना घाहत नहीं जमा (दोहा ३१ २ छोमु न रामदि राजु कर” झौर ( चौ« ? दोदा ३६ ) “घद्वत न भरत भूपतद्द भोर” से स्पष्ट 7 अपनी पन्पनामें राजा एसा नदीं घोत रऐं हैं चन्फि भीराम और मरतफा अभिमत ज्ञानफर फैफेर्य कई रहें हैं। पेसी परिरियितिमें राडपद छिसफो दिया जाय! यह प्रश्न है। इसफे समाधानम राज़ाने छा फा सदारा छेफर शुल्रीतिफे अठुमार ग्येप्टत्प ऐोनेसे भीरामफो हठाल युषराज बनानफा निणय फ़िया | इसपर पुरजन प्रजापी सम्मति कौर फैपेयी पी ४ छाफा आनुपूल्य समझनसे अपनी प्रतिश्ञायो मिश फरनेका पारण मरी है । न तो भीराम या भरतफे प्रद्धि पश्नपात है'। शाख्र फा नियासफत्म मानने राडाफी जितन्टियता भी प्रफट है। ज्ञातब्य ऐ फि राजा यदि अपनो प्रतिक्षाफों ही अपनाते है राजनीति फा छोप छोनेसे राम्य और देशपता पिनाश्टा है। शास्त्रातनुयायी सत्यमथ भक्तफ़े द्वारा २ ऐसा फोई संफन्‍प दो जाता है! शिसफो पूर्ण फरनेपे छिए शाग्र-पिघानफा अनुसरण करनेमें श्रप प्रतिन्षा अम॒त्य होती दो शो प्रमु पुष्छिसि उसझो पणे फरत हू। जैसे राजाफा यट प्रभाय फद्दा जायेगा प्रभुणी अनुफस्पासे एसा पिधि पिघान चन गया फ़ि राजनीतिफ्ी छम्रछायामें श्रयीषा प्राघान्य र| हुए ( भरत एः राम्य संघाएन से ) राजाफी प्रतिशा भी रह गयी और श्रीराम एवं भरतफे घरिभ्रसे राजा पचन भी सत्य प्रमाणित एफ । संगति--भी शाम फे आत्मम॑पदादि गुणों फे साय उपरोक्त दर््यों का निरुपण राजा ने गुरु बसिप्त सामने फिया | पौ०-मकद्दि राह प्रिय जेदि पिचि मोद्दी | प्रत्व असीम जनु वन्नु घरि सीदी ॥३॥ तन्रिप्र सध्तित परिवार गोसाई। फरईे छोट्ट सब रौरिदि नाई ॥४॥ मायाथ--संपूर्ण सेवक पुरणन झादि सभी को भीराम दैस॑ द्वी प्रिय हैं, दैसो उमकी प्रियता मुझमें है। भीर ऐसे हैं मानो लापका भाशीवषोंद दी सूर्दिमात रूप में सुसोभित है । दे गुसाई जी ! संपूर्ण दिप्र समाज, परिय सह्दित, मेरे धुत्र पर ऐसा दी प्रेम करता है जैसा कि शाप! ॒ समलायक की उपादेयता शा० ध्या*--पुर एप जनपद में स्थित सभी यर्गा' फो जो प्रिय है' यही राजा फे लिये परम करतेण्य माः गया है। क्षनः भी राम को राजपदाधिप्टिस बनाने में यद्द उत्सम निर्दिष्ट है। एकतन्त्र में छोकसः प्रकरण को ध्यान में रस्पते हुए राजा का कर्तस्य दोता है फि वह अपने प्रति लोफसम्मति ( जनानुराग को स्पायिनी घनादा रहे। राजा दशरथ ने इसी छोकप्रियता,को 'सवायक! से दृशाया है। इसको राम ने बाह्यक्राप्ठ से ही स्वमाषत' अर्जित कर रखा द। फ्षेप दोहा ३१ देखें




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