राजस्थान का स्वाधीनता संग्राम | Rajasthan Ka Swadhinata Sangram
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.85 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजस्थान पर प्रिटिश प्रमुसत्ता थी स्थापना है था विवाह मानसिंह से मरेगा तथा मानसिह भपनी पुष्नी बा विवाह सवाई जगतसिंह से बरेगा । इस सच के वाद भी भ्रमीरखां भौर मानसिंह को यह प्राशका थी वि यदि डप्साकुमारी जीवित रही तो जयपुर मे साथ हुई मित्रता वी सम्धि भस्थायी सिद्ध हो सकती है । श्रत मानसिंह ने भ्रमीरखां वो इस उद्देश्य से उदयपुर भेजा वि वह जयपुर घौर जोधपुर के सघप मे मूल कारण को हो समाप्त बरदे । जुलाई 1810 ई. मे भ्रमीरसां तीस चासीस हजार सेना के साथ उदयपुर की तरफ रवाना हुभा । ध्मीरखों ने मेवाड राज्य में भयवर लूटमार मचा दी तथा महाराणा से 11 लास रपया की माग वी यह रवम ने मिलने पर अझमीरखा ने एवलिंगजी के मादिदर को लूटा शोर महाराणा का कद्दलवाया कि या तो इप्णागुमारी की शादी महाराजा मान सिंह से करदी जाय भ्यवा छृप्णकुमारी थी जिंदगी समाप्त करदी जाय मयोधि जव तक वह जीवित रहेगी जयपुर श्रौर जोधपुर मे बीच युद्ध छिड़ने की समावना बनी रहेगी । महाराणा की निवलता श्रौर सामता के पारस्परिव सपप वे नारण महाराणा इतना भसहाप हो चुवा था पि भ्रमीरखां दा छूशित प्रस्ताव रवीकार करने के मतिरिक्त उसके पास भय कोई विकल्प नहीं रह गया था । झ्त शप्साकुमारी को. विप दे दिया गया जिससे 21 जुलाई 1810 बो 16 वर्षीय राजक या का भ्सामधिक देहात हो गया । यह था बप्या रावल मे बशजों का नैतिक पतन सवधा निदनीय छृप्णाकुमारी की घटना ने राजपूत राज्य के झान्तरिव खोखलेपत बा झगावरण कर दियर । शासक और सामन्ता को अपने तत्कालीन स्वाथ सिद्धि हेतु वाहरी शक्तियों से सहायता लेने मे जरा भी सकोच नही हो रहा था । पे चाहरी शक्तिया कभी शासकों भौर साम तो को भ्ापस मे लडाती ता कभी सामन्ता को ही श्रापस में लड़ा देती थी । परिणामस्वरूप एक श्रोर हो शासकों और सामतों की शक्ति क्षीण हुई तथा सामता पर शासकों का सनियत्ण समाप्त हो गया श्रीर दूसरी झभोर वे बाहरी शक्तियों को धन देवर उनकी शक्ति बढात रहे 1 1807- 1 ई के बीच सिधधिया भौर होल्कर ने जयपुर से भारी रकम वसूल की तथा झमीरखा ने भी जयपुर श्रौर जोधपुर से धन वसूल क्या । इसो प्रवार बापू सिंधिया ने मेवाढ में हमीरगढ श्रौर भीण्डर से भारी रकम बद्ूल की । इस वर्वादी से मुवित पाने वे लिए तथा ध्रपने अनियधित सामन्तों को. नियश्रित करने के निये 1807-15 ई के सध्य राजपूत शासकों ने प्रिटिश सरक्षण के लिए बार-बार प्रयत्त किया लैमिन चम्पनी वे सचालक इसके लिये तथार नहीं थे बयोकि कम्पनी शमी तर देशी राज्या के प्रति भ्रहस्तक्षेप की नीति का अझवलम्बन कर रही थी हालाकि अपन इस नीति का दृढ़ता से पालन नही हो रहा था 1
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