व्यक्ति का विकास | Vyakti Ka Vikash

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Vyakti Ka Vikash by रमाशंकर शुक्ल - Ramashankar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ्‌ व्यक्ति का बिकास है | गर्भावान के दूसरे ह॒पे में पहिले का निर्मित कोष समूह तीन अलग- अलग कोष समूहों में बंद जाते हैं। इनमें से कुछु तो भ्रूण या बच्चे के काम में आते हैं, तथा कुछ अपरा का निर्माण करते हैं तथा भ्रूण को संबाहिनी-तन्तु-रचना से जोड़ते ईं | अन्य उन भिल्लियों में विकसित होते हूँ जो कि गे स्थित बच्चे की चारों ओर से घेर कर कई प्रकःर से उसकी रक्षा करती हैं । इस समय तक श्र, इतना विकसित हो चुकता हैं कि उसे मात्र आँखों से देखा जा सके । किसी भी सृक्तम दर्शी यंत्र को श्राबश्यकता नहीं रहती । अब शरीर के कई अगों की रचमाश्रों की तीसरा प्प्ताह शुरूआत हो जाती है। सर झोर मष्तिष्क का रूप घारण करने वाला ज्षेत्र बड़ो तेजी से विकसित होने लगता है। जिन स्थानों पर आँखे होंगी वहाँ पर थोड़ा सा गड़ढा बन जाता ६ ; चौथे इफ्ते तक श्र,ण तेजी से विकसित होकर लगभग ई इश्च लम्बा हो जाता है। इस समय से हो हृदय, मष्तिष्क फेफड़ों जिगर तथा पाचन संस्थान आदि आंतरिक रचनाओ्रों के निर्माण का प्रारम्भण हो चलता है। यद्यपि हम श्रवण तो नहीं कर सकते किन्तु हृद्य-घड़कन इसी समय से शुरू हो जाती है। श्रण एक अर व्रत्ताकार श्राकृति धारण कर लेता है और मेरुदंड' का निर्माण शुरू हो चलता है। अन्य ओगों की अपेत्ता सर अधिक तेजी से विकसित होने लगता है। हॉथ ” और पैर की रचना भी शुरू हो चलती है। कई संकेतों से श्रब कोई छ््री यह समझ सकती है कि वह गर्भवती हैँ । इस समय तक भ्रण < इश्च लम्बा हो जाता है। अत्यन्त छोटे रूप में हाथ और पैर अपनी उगुलियों के साथ परिलच्षित होने लगते हैं | शरीर की आंतरिक रचनाओं की विकास-गति तौत्र छठा सप्ताह हो जाती है और भ्रूण एक पुच्छ और छोटे शरीर से जुटे हुए रूप में देखा जा सकता है।




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