श्रीमद्भगवद्गीता पुरुषार्थबोधिनी | Shrimad Bhagavad Geeta Purusharth Bodhini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
1017
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४)
रूप पोश गैने भाज तुमसे कहा है क््यों'के तू मेरा | पातपूर्वक विधार हो जायगा भीर पदि पथाम
झक्त है भौर मित्र मी है । *
बह स्वब सगयासके ६४ कड्ा घबा हे ढि, सीता
कोह लवा क्षाक्ष नहीं हे; परल्यु ब्रादीम परंपरासे लो छ्ाज
लातिक/छ्ने चक्षय लापा दे बहो पुत्र बदां कहा गया हे
वेद' दो घनादिक्रास प्राथीस परपर/से बसा झाता
है। पात्दु सानदी लडह|गके कारण बस सासंश्षे सजुष्द धर
चर धाते हैं | इसकिने खमताको छपातेबासे उत्तम
पुरुष आरबार भाते हैं थेसाकर जनताको जगाते
है क्वौर पारपरिछ ज्ञात देते है। भोकृष्ण मगवान्
इसी मह्तड केस: पृश्र? िंवा पृरषोत्तम थे
ओर दक्त दे तुसे ही डरचोने गीत्ताणार्का रुपदैश
किया | इससे स्व्ठ हुला कि गीताश्षाक्रमें छो छान कहा
पे बहकदान परंदाफ्रे कक्प काठ दे बदलाव इप़्से पूर्वक
प्रश्बोति सी भिक सकता हे बह शषा वहीं दे ।
इस पुढवाय बोषिसी भावार्टकार्मेबद्दी बात इर्शा बी
ख्ादमी हि. बेद् उपम्िषत् आशि प्राचोथ मत्योके ही
फ़िद्दोत भोतामें शव डपसे किप्ट बकार कई हैं । अर्थात् थे
ही शीताके छ्िद्धांध प्राच्ीत प्रत्थोवें किग्न रुपमें हैं | बह
दात इस पम्रण तकके किप्ली दीकाकापरने विज्ञद वहीँ कौ है
प्राद्ीज डी काक्ारनि इक कुछ क्षेक बताया दे परश्तु इस
का विक्तेद बबन किप्लोने लभीतक बहीं किया हे
शत इस प्राचीष परपराको बताचा इस्र॒ पुरुषाथेबाषि
भी रौकाड़ा सुस्य कदेश्य हे लबबा पहदी इघकी विशेष
ता है। गीतापर इध दौकप् होते हुए ुगा बह शैका
किखतेजा पद्दी प् मात्र हेतु दे ।
अवाक्षीस अर्ष पूरे सेंबे भराझी सााएँँ एक साराक्षरजसे
भीताका झपाश्तर प्रकाशित किया था बोर गौताके कह
इास्दोकि लर्म बेदिक बमत्थोमिं विश्वित करौफ किये थौ कई
कस समय समधपर कछिछे के | तबद्षे बह पुरयाद॑-
वोधिनी रीक्म किखमेका सैकश्प हे लत तबप्े शौटठोका
विचार हो रहा दे जोर आचौज सन््यवचरोंदी तुझश शीत
अचलोड़े साथ तबसे की कय रही है। इतने पसवके मबबदे
भेतर सबका बह विश्व हुणा दि येद दपशियद् और
शीता इसका तात्पये एक दी दे ओ भेद किसीको
दीदता है पद भहातके कारण है। पादे विःपक्ष
माम छी कझुपित इाप्टे दृर दोता किसी कासमें
संमव दो आयगा तो इन तीमोका पक ही सात्पवे
सए४ रीतिसे दृशके सम्मुख डपस्थित होगा इसमें
मुझे सेगेद गहीं है ।
बह बात विद्वित देड़ि बह गौताप्ताल कोगोंडे
विज्ञारोंढे सततेद बहानेके किये शत्पत्न हीं टुआा रपितू
दिमिक्त मतोंका संगर्तिकरछ करके, डनसे प्रकट
दोनेयासी विविधता दूर करके ढनके भंदर जो
अमेद दे रुस भोर छोगोंके स्पामकों भाकार्पित
करालेके छिये ही गीताशाख्रकी रचना हुए थी।
बचपि पूछे पुकता लगद। समताकाजचार करनेबाले प्रस्पर
भी बामफकू डिमिन्ञ मत छाहदे गये हैं | परस्तु मूक
देखा बाष ऐे विभिन्न तस््वोमें ध्याप्त रइमेवादा
आमिश्न तत्त्व बतानेक स्लिये भौर इन सबका सम
स्वय करबेक छिपे इस धीताशारप्रकी उत्पत्ति है।
कआर्थात् बह व छ्ाजदे शढहावेके कि बहीं दे लपितु क्षाऱे
बटानेके किये दी हे ।
बह दृष्टि बदि पार रक्षये, तो डबको भीतांका इृढि
कोण छ्ीज दौसेगा कौर ये गीताके दपदेशके अमुप्तार
छत्थरण करके धपथा और लकताका कम्शुशद ओर बि।
ओेदफ़ साथन करमेके लबिकररी हो प्र्केते |
जम्तों मुझे पुणे लाक्षा हे कि शिपत पढ़ार पूछे और
श्रोदित हुए भल्ुतको डढस सम इध भगवाबके सील
है प्रागे बर्शावा इसी प्रकार इस प्रमण सूछे भड़के लौर
मोहित हरप् लबोंको सी थद सीता सजा मागे इश्चानितै
जोर मावबी डब्नतिद्य पथ प्बके किले झुका कर देगी ।
हंस शोेस््वश्े सपाम, भीकृष्ण कहते हैं कि- सब
परन्य मतोंका ध्यास करके एक सेरी दी ६९णमें सा
में हुस्ते सब पापोसे मुक्त करूंगा, थू प्लोफ मत
कर।(स गौ १८६६ )
शो विश्वास रझूंगे बोर देवकार्थमें अपने लापक़ों समर्षित
करेंगे झक्को बही लशुसद लांबेसा ।
लिवेदक-
झौपाद दामोदर सातबस्छेकर,
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