रघुवंशमहाकाव्यम् | Raghuvanshamahakavyam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मम मूमिश्न भछे ही कर छे, फिम्तु उसमें बढ़ सरसता महीं जा सकती डो प्रतिमास्तरत किक कपष्पमें होती दे । पंद बर्मगाम्र पुराण स्मादरण छुस्द कहा ही हवास कामतस्ज, आयुर्वेद, कोप क्ाहि विविध शासकों पु कास्पप्तासअविष साहित्पाक्रइराएि प्रस्थोंडा आाम्मापपरइक जान प्राप्त करना बिपुणता' पयुत्पचि' कदझाती है । इसक ह्वारा कषि आचाराजिदस क्रिता करनेमें सर होता दे । सततर्स्ात होकर सस्‍्वप तथा गुए्जतक समक्ष कास्यरचषबा कमर कामिक विकास करते रहमा 'ल्म्पास! कइ्काता है । ओेताचाय बाग्मर (परम) प्रतिसाको काब्यका कार्य स्युत्पत्तिको 8 'ज तथा अभ्पासका कमिकाएार शर्घाव्‌ तीम को ही काप्पका कारण साला दे ! कास्पप्रकाशकार झीी सम्मिश्तित तौबोंकों ह्वी काम्पोप्पत्तिमं करण मामा है । काव्य-क्ृन्षण सथका जलन करने था डावलेबाका कवि! कइराता दे। श्कोकोड़ो भर्ति कर था धर्णंब करें उसे करदे कहते हैं। ( कबते रक्ोक्पण प्रधत बरोंबति' ककषिए ) रे झध्य का प्रधोग कप पं विश्वत्पामास्प के डि सी दाता है अस्थिपुराणमें खक्ड्टार पर्ष गुर्थोसे धुक्त तथा गिद्ोष पद्ावकौको काल कडनेके बाद इस काव्बर्से बचचनचातुरीकी प्रथानता रहने पर सो रशको दी का का प्राद्य कहा गजा है । बासभाजाजेने सी पहो स्वीकार किया है सादित्पवपे कार विश्रवाथने तो रसको ही काप्डकी ओक्‍्सा माषा है* शा परिदा राज लगत्ताजते रसपक्बरमे इमजीपाध॑प्रतिषादुक सब्यको काष्जकौ संशादी और रस रसमें अमत्काएको सार बतकापा है | इस मकर समशिरूप १ बाष्सराष्ट्राए ११ न है अमण्पप्रकाप्त है है !भा इसदो पृत्ति ऋबर रम्मिकिता' “हैलुबें तु देतवर रत ३ आाझओ देत्वपुकः काम्य रुयला जमाेव काबे! | ( क्रमरष्थेष २३२७ ) ४ िद्वात्‌ दिवविशरोषक् “शक बागातू बण्शित” कब । ( लमरदोोष २७४५) ७ 'संद्िपा/शअम्िा्-बत िउल्लपदाबलो । काव्य स्‍्कुरइछदाएं धुपवद्ौरयर्शितस्‌ 77 ( लव्सितुएाय ३३७७ ) सब[-- बाद रध्यप्रवागैद्रपि एस एवाज छौवितय। ( ल्यौगबु ११०१३ ) ६ ब्रहस्य--करभ्यरह्टा रसूजथ १1१1१ है तथा छल बृत्ति । 7 ७. “बाज्ष र्ारमर्क कास्यण। (सा इ७ १) # ६1 'रमजौबाजेपट्रिपाइबर शदा7 राम्यण | तथा--रते सा अमत्कर: |




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