महारानी - पद्मिनी | Maharani - Padmini

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Maharani - Padmini by रामस्वरूप शर्मा - Ramswarup Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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।िगका ९५ | बात है ? अच्छा अब आज इस वातकी चचांको छोड़ो चद्द देखा | चित्तौरेइबर्राके मददलमें आधीरातकी नौवत चजने लगी यहुत रात द्ोगईे चलो अव आराम करें । | पश्चिनी और भीमसिं दोनों डढकर उसी समय अपने २ पढुेँग पर चलेगये । उस रातको उन दोनों में और कुक वात नदी हुई । सोजन थालंसि ही घरा रददा भोर दिन इस समय तक सरबवतका पात्र खाली दोजाता था परन्तु आाज उखको छुआ मी नहीं गया धाय्याकी शोभा लिये पक चौकी पर वहुतसी पुष्पमालायें धरी थीं चदद ज्यों | की त्यों पड़ी रहीं उनको घिह्लोने पर लगाता कौन १ चांदियें सोगयी थी पश्चिनीनि उनको पुकारा नहीं । भीमरसिंद भी पश्चिनीके पास ही पक पढँग पर लेट रहे । दीपक न जाने किस समय मद्दा पड़कर पघन का कोका छगते ही घुकगया इंस बातकी उन दोनोंको कुछ खबर नहीं। | पश्चम परिच्छेद पद्चिनी का पत्र सना दुसरे दिन प्रातःकाल राज़सभा ( दुरवार ) से लौटकर आने पर भीमसिंह आख्वयेम दोगये उन्होंने देखा कि--उनके घरफा द्वार £ । भीतरसे बन्द है । द्वारके पास दी सफेद पत्थरके छोटे २ दो जाली- दार करोखे थे उनमेंसेद्दी पकमेंको काँककर भीमसिंदने देखा कि- रानी पद्चि नी. कम दावात लिये कुछ लिखरदहीं हे। पश्चिनी कुछ | लिखना पढ़ना भी जानती हे यह घात आज भीमर्सिदको नयी ही मालूम ॥ हुई। पद्निनी अपने नामको सार्थक करती हुई चिरकाठसे उनके घरमें छचमीकी समान निवास करती है परन्तु आज उसको सरस्वतीफी | सूर्तिमें भी देखकर मीमसिंहके आस्ययेकी सीमा न रददी । भीमसिंध है | ने पुकार पश्मिगी पद्मिनीने दौड़ी २ जाकर चट किवाड़ खोलदिये | परन्तु घरमें जाकर सीमसिंह को पश्चिनीके दाथके लिखे कागजका पता | न चला | मीमर्सिदने कहा आज मैं देखता हूँ कि-छच्मी सौतिया डाहको भूढकर सरस्वती के साथ घद्दनेला ( मित्रता ) कररदी दे यदद क्‍या बात है १। पश्चिनीने मॉर्ताकी समान चमकदार दौतोको | घाददर कर कोमल .अधरको धीरेसे चवातेडुए कहा कि--घादरफी | गड़वड़ी को देखकर भीतरकी गड़वड़ी मिटा डाली है नहीं तो फिर £. सबेस्व नष्ट होता था ममिसिंह ने जरा हँसकर और सुर यदल फर |




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