भागवत चर्चा - चौथा भाग | Bhagwat Charcha (vol. - Iv)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
444
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ , खँंत-महिमा
प्रसिद्धि पाये हुए अनेकों पुरुष वस्तुत; संत होते भी नहीं | उनका
केबल संतका ऊपरी बानामात्र होता है | मन असंत तथा विषयी ही
होता है। ऐसे छोगोंसे संसारकी बहुत बुराई होती है | ये धर्म-
संचालनके कार्यमें अयोग्य होते हुए भी जब उसमें अनधिकार अवेश
कर बैठते हैं, तब अपने हृदयके विकारों और व्याधियोंको ही जगतमें
फैलते हैं, और अपने सम्पर्वामें आनेवाले नर-नारियोंके जीवनोंको
पापमय, फछत: दुःख और अशान्तिपूर्ण बनानेमें सहायक
होते हैं | सब्चे संत अधिकांश अग्रकटठ ही रहते हैं, उनकी कोई
ख्याति था प्रसिद्धि नहीं होती | ऐसे सच्चे संतोंको पाने और उन्हें
पहचाननेके लिये संत-साधनाका आश्रय करना परम आवश्यक है ।
संतोचित साधनोंका--उपर्युक्त गीतोक्त चाढीस साधनोंका अभ्यास
करनेसे---ज्यों-ज्यों हमारे अंदर उन गुणोंका विकास होगा, त्यों-ही-
त्यों हम संत और संतकृपाके अधिकारी होंगे | कठिनता तो यह है
कि हम संतोंके चमत्कारोंकों ही पूजते हैं, उनकी साधनाको नहीं---
जिसके बिना हम यथार्थ छामसे वश्चित ही रह जाते हैं ।
संतमावकी ग्राप्तिके साधन
भगवान् या भगवानके ग्रेमकी ग्राप्ति ही महुष्यजीवनका उद्देश्य
है और जो इस उद्देश्यमें सफछ हो चुके हैं, वे ही संत हैं | अतएव
इस संतभावकी प्रा्तिमें ही, मलुध्य-जन्मकी सार्थकता है | इसकी
प्राप्िकि अनेकों उपाय शात्लों और संतोंने बतलाये हैं, परंतु इनमें
प्रधान दो ही हैं ।---१-भगवानूकी नित्य असीम कपाका आश्रय
और २-ढक्ष्यआएिके लिये दृढ़ निश्चर और अठछ विज्ञासके साथ
किया जानेवाल्ा पुरुषार्थ !
User Reviews
No Reviews | Add Yours...