रुद्राष्टाध्यायी | Rudrasthadhyayi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं ज्वालाप्रसाद मिश्र - Pn. Jvalaprsad Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अजब... भाष्यपाहिता । (७)
प्रजास्तासां प्राणिमात्राणाम् ( अन्तः ) शरीरम्रध्य आस्ते इतरेन्द्रियाणि वहिष्ठानि मनस्त्वन्तरि
८ $ - हो,
न्द्रियमित्यथे: । ताहश में मनः शिवसड्डल्पमम्त्बिति व्याख्यातम् [ यज्ञु० ३४ 1२ )॥ ६ ॥#
_ आषार्थ-कर्मानुष्ठानमें तत्पर बुद्धिसम्पन्न मेधावी; यज्ञम जिस मनसे उप्तमकर्मोको
करते हैं जो प्राणिमात्नके शरीरमध्यमें स्थित है अरथोत् इंद्रियवाह्म ओर मन अन्तरमें स्थित है
यज्ञ सम्बन्धि वि आदि पदाथोंऊ ज्ञानमें जो अद्भुत वा सबसे प्रथम वा आत्मरूप पूजनीय-
भावस स्थिव है वह मेरा मन कल्याणकारी धर्मविवयक संकल्पवाला हो ॥ ६ ॥|
मन्त्रः ।
यत्पज्ञान॑मुतचेतो ध्रतिंइ्चयज्ज्यो तिरन्तरम्तंम्प्र
आम
जासूं॥ यस्म्मान्न:ऋतेकिब्नकम्मक्रियतेतब्मे
मन॑*शिवर्सड्ूल्प्पमस्तु ॥ ७॥
३ यत्प्रज्ञानमित्यस्य ऋष्यादिविनियोगः पू्व॑ेतत् ॥ ७ ॥
भाष्यम-( यत् ) मनः ( प्रज्ञानम् ) विशेषेण ज्ञानननकम् ( उत ) अपि यन्मनः
( चेत: ) चेतयाति सम्यगू ज्ञापयति तच्चेतः ' चिती संज्ञाने ' सामान्यविशेषज्ञानजनकमित्यर्थ:।
(व) यज्च मनः (धृतिः) थेयेरूप मनस्येव थैर्योषपत्तेमनसि थेर्यमुपच्येते ( यत्) यज्च
( अमृतम् ) आमरणधार्मं आत्मरूपलात् (प्रजासु ) जनेषु ( अन्तः ) अन्तवतेमानं सत्
( ज्योति: ) संवन्द्रियाणां प्रकाशकमुक्तमपि पुनरुच्यते ( यस्मात् ) मनसः ( ऋते ) विना
( किश्वन ) क्रिमपि ( कर्म ) कर्म ( न क्रियते ) जनें: सर्वकर्मसु प्राणिनां मनः पूर्व प्रवृत्तेः
मनःस्वास्थ्य विना कमी भावादित्यथेः (तन्मे मनः) इति व्याख्यातम् [ यजु० ३४ । ३ |
भाषार्थ-जो मन विशेषकर ज्ञानका उत्पन्न करनेवाला है ओर भछीग्रकारसे सामानन््य-
विशेष-ज्ञानका प्रगट करनेवाछा, चित्स्वरूप ओर धघेय॑रूप ह, आत्मरूप होनेसे अविनाशी
जो प्राणियों के मध्यमें अन्तर वर्तमान प्रकाशक है, जिस मनके विना कुछभी कार्य नहीं किया
्भ् सफर |
जाता वह मेरा मन कल्याणकार्यंमें संकटपवाढा हो ॥ ७॥
मन्त्रः ।
येनेदम्भूतम्भुवंनम्भविष्ष्यत्परिंगहीतममस्तेनस
वैंम ॥ येनयज्ञस्तायतेंसप्प्होंतातक्ष्मेमन*शिव
संडुल्प्पमस्तु ॥ ८ ॥
ऊँ येनेदमित्यस्य ऋष्यादिविनियोगः पूवेवत् ॥ ८ ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...