पातञ्जल योगदर्शन तथा हारिभद्री योगविंशिका | Patanjal Yogadarshan Tatha Haribhadri Yogavashika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Patanjal Yogadarshan Tatha Haribhadri Yogavashika by यशोविजयोपध्याया - Yashovijayopadhyaya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about यशोविजयोपध्याया - Yashovijayopadhyaya

Add Infomation AboutYashovijayopadhyaya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[६] वर्णन बेदका शरीर मात्र है। उसकी आत्मा कुछ और ही है-बह है परमात्मचिंतन या आध्यात्मिक भार्वोका आवि- प्करण । उपनिषदोंका प्रासाद तो श्रह्मचिन्तनकी वुन्याद पर ही खडा है। ग्रमाणविषयक, प्रमेपचिपयक कोइ भी तस्व- ज्ञान संबन्धी स्जग्रन्थ हो उसमें भी तत्वज्ञानके सांध्यरूपसे मोच्का ही वर्णन मिलेगों। आचारविषयक सत्र स्एृति आदि सभी ग्रम्थोंमें आचारपालनका झुख्य उद्देश मोत्त ही १ वैशेषिकद्शन अ० १ सू० ४-- धर्मेविशेषभ्रसूताद्‌ द्ृज्यगुणकर्मसामा[न्यविशेषसमयायानों पदाथौतां * साधम्यवैधम्यौम्यां तत्त्वज्ञानान्िःभयसम्‌ ! || न्यायद्शेन अ० १ सू० ९-- प्रमाणप्रमेयर्सशयप्रयोजनदृशन्तसिद्धान्तावयवतक निणे- यवादजल्पवितण्ड्वेत्वाभासच्छलजातिनिप्रदस्थानानां. तक्व- झानाक्निःभेयसम्‌ || सांख्यदर्शन अ० १-- अथ त्रिविधदुःसाटन्तनियत्तिर्त्यन्तपुरुपार्थ ॥ बेदान्तद्शन आ» ४ पा० ४ सू० २२-- अनावृतिः शब्दादनावृत्ति; शब्दात | जैनदशेन वसस्‍्ताय अ० १ सू० १-- सम्यग्द्शन्तानचारित्राणि मोक्तणागंः ||




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now