वेदमन्दिर प्रवेशिका | Vedmandir Praveshika

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Vedmandir Praveshika by ऋषिराम - Rishiramयोगीन्द्रानन्द न्यायाचर्या - Yogindranand Nyayacharya

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योगीन्द्रानन्द न्यायाचर्या - Yogindranand Nyayacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र चेद मन्दिर - अवेशिका तत्वोपदेश और द्वितीय, परिशि्ट अध्याय परम पुरुपार्थ-साधनोंकी, चूर्चो दूं [ए ,5 वें कक हे रत पहन नर पट के (५) छन्दः शाख -- गाप्री मादि इन्होंका स्वच्प बताते हैं | इस शात्षका मूठ खोत ऐ्व्राह्मण १८-५६, ६९में पाया जाता है |-किन्तु आदिम आचार विज्वल* मुनि माने जति हैं। इनके विषय प्रसिद्ध'है--- शेषनागके अवदोर'थे? ,| एक बीर पृथिवीकी सर करके पाताछ जाते समय इन्हे साक्षांत्‌ झत्यु स्वरूप भगवान्‌ गरुड़ मिछ गये । गरुड़कों “झाँसा 'देनेका मार्ग शीत्र निकाक लिया 1 पिज्वढ नागको ज्ञात था कि गरड़ वेडिक हन्दोका सत्कट जिज्ञामु है; तुरन्त सृच्-अद्ध :भाषामें हन्दोंका सुन्दा स्वरूप बताते हुए निकट समुद्रकी ओर सरकने लगे। गरुड़ मुग्व भावसे मुन ही रह! था कि समुद्रमें पिड्वछ डुबकी छगा गये --- यो विविधवणमात्रात्रस्तारात्सांगरे माप्य 1 गरुड़मवश्चयदतुछः स हि नागः पिड़लोजयति ॥# , - (पिन्नब्वार्तिककार चन्द्रशेखर) सम्बत्‌ू १९२६में कल्कत्ता-मुद्रत हलायुघ दृत्ति-सहितः प्रिज्ञक सुत्रके आधार पर इसमें आठ अध्याय हैं | जिनमें क्रमश: १५, १६, ६६, ५६३, ४५, ४२, ३४, ३२ सूत्र हैं। प्रथम अध्याय “मकाशदि: संज्ञा, दित्तीयमें “पाद, तृतीयमें गायत्र्यादि - ! # पिड़लादिमिराचार्य, यदुक्‍त छौकिक द्विपां।. है 5. मात्रावर्णविशेदन,' चन्दस्तदिद कप्यते ॥ (केदारमह $




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