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Apani Khabar by वेचन शर्मा - Vechan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बनारस म नीची बाग में उनवी छोटी-सी दुकान थी । पन्‍्ना जालजी मुभे दो रपये रोज देते और मैं उह “महात्मा ईसा' चाटक वा एक दश्य लिखकर देता था। दूसरे प्रकाशक 'मतवाला” के सचालक श्री भहादेव प्रसाद सेठ थे, जिनवी मुस्य लत थी गुणिया पर आतिक होना। मुशी नवजातिक लाल, ईइवरी प्रसाद मा, शिवपूजन सहाय, सुयवान्त त्रिपाठी निराला पाडय वेचन शर्मा उग्र! झ्ादि में, जिसम जा भी खूबिया थी उह खूब ही सहृदयता से परज, खूब ही प्रम मे पूजा महादेव सेठ ने । महादव बापू 'निराला' जी पर एसे मुग्धथ वि उह गुलाव वे फूल वी तरह हृदय के निबट वटनहोल में सजाकर रुसत 4। अधघाते नहीं ये महादेव सेठ उदायमान कवि निराता के गुण गाते ! यह तब थी बात है जब निराला को बाइ बुछ भी नहीं समभता था। ग्राज ता बिता कुछ समझे पव जुछ समभने वाल समीक्षव स्वयसेवका वी भरमार- सीहै। महादेव प्रसाद सेठ वे सहदय बटनहोल में निराता मुझे ऐस झाकपत्र लगे कि देखते-हो-देयते उसमें म॑ ही म॑ दिख्यायी पडने जगा । महादेव चावू से मरी पहली न यह थी वहिए आप, वि वह पच्चीस सपये माहवारो मेर घर भजेंगे पर स्वय जो साएँग मुझे भी वही सिलाएँग दूसर दिन दोपहर मे जब सेठजी श्रगूर खाने बठे तव व्मानदारी से अपन झा के आध अगर उहाने मेरे सामने पत्र क्यि | इस पर साल- बाना हा से मैंने बहा यह गलत है” “गनतन वया महा- राज ?! दिम्मित हा पूछा प्रेमी प्रवाशव १1 मन वह्य मेरे आपवी यह रात नहीं थी वि में आपकी सराक आधी पर द्‌ शत है दि या झाप खाएँ वही में नी साऊ। भाप राज आधा तर पाव प्गूर गात हैं ता आधा ही पाव मेरे जिए भा मेंगाया




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