पुरुषार्थ सिद्धयुपाय | Purusarth Sidyupay

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Purusarth Sidyupay by अमृतचन्द्र जी - Amritchandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८०७०८ “%35:%#3६%#-८०८२६ ५८४८ %३॥-०८७॥।-०८५६५५- 63८05 50९०%८२॥८१५ ८०४ ७८०४5:७४- +&£%ज 24 ,अलमलकन»णेनत मनन कफ काल कप. वाली ट्टीतो नहीं है। इसीपकार बर्तु कहनेसे वस्तुल-गुणका, ज्ञानी कहनेसे न ज्ञानगुगवालेका बोध होता है। एक शब्दसे समस्त वस्तुका बोध कभी नहीं हो सकता। शब्दमें वह शक्ति ही नहीं है कि सर्वधर्मोको | एक साथ प्रतिषादन कर सके। इसका भी कारण यह है ड्टेकि जितने थी शब्द बनते ईं वें सब पातुओंधे । ४, 2. ७... ६7९. बदते हैँ : धातुएँ क्रियात्मक होती हैं, क्रिया | एक समय एक ही धमका योतन करती ह्ढे। इसलिये शब्दों. द्वारा जोकुछ वरठुखरप कहा जायगा, चह भेदात्मक ही पडेगा । परतुसरूप अश्ि जिनद्ध है,अतः निश्रयनय बिक ३... हर. जीवका शनझुण दे! ड्स कथनका भागमथ्या समझता है । शब्दों द्वारा प्रतिषादित अेदात्मक धर्मोका । निषेध करते डर भी अनन्तग॒ुगोंका अभिन्नरू्प अखंडपिंडरूप अवक्तव्त जीव द्रव्य ही निश्चय नयका । है५ | बच इरआ विषय पडता हैं | उपयुक्त केथनका सार इतना हा हु कि निश्रयनयका विषय अवक्तव्यरूप सावद्रज्प है। बाकी समस्त भेद्रूपे कथन व्यवहारतयका | विषय हैं! जीवके ज्ञान कहना, यह भी ब्यवहारनपका #% ५ # ही विषय है । क्योंकि ह्र्व्य गुण भेद प्रगद किया ह्टे। यहां पर पद शंका की जा सकती है कि जब द्रव्ययग का क कथन भी पिथ्या हे जो कि वास्ताविक है, तो परनिभित्तते जितना भी कथन दोग। बह तो | अवश्य ही भिथ्या होगा । जेसे किसी पुरुषको क्ोधी कहना । क्रोध ज्ञानकी ' तरह आत्माका निजसरूप । हर है (४ तो नहीं है, किंतु पुदुलद्र व्यके निमित्तसे होनेवाला आत्माका वेभाविक परिणाम डे ॥ यह तब कथन | विश्रियनयतत भिथ्या ठहरता है, - तो क्‍या व्यवह्ारनयका विषय सब भिथ्या ही है ? यदि ऐपा हे व्यवहारनय भी भिथ्या ठहृरा.* इस शंकाका उत्तर यह है कि- । जो व्यवहारनयका विषय है; वह निश्रयनयपते मिथ्या इसलिये है कि वह नय शुद्वस्तुस्वरूपको | । टी. 67% ५, #«७. 8 का ३ आर ही विषय करता है । परन्तु व्यवहारनय भी मिथ्या नहीं है, परानिभित्तसे होने नेवाे पममाकां विषय करना | ६९५६ %८3९७५८०१५८५६५८- “++िलाज+++___++7_7-7+_----++++++४+४++-+२२३२२२२६६२२७--+-++--०००७>तहञएपञतञलनल>लील>तातातत्ल तन न क 4००० नन्‍्ककिप सी पकर-नमन+न + केकलो० ७०७०० कब +»++ पान कक -७५०-+-नजकन जनक फ ० +न++-ननन+-++ कप ककननन-+ न वन एल्‍-+०++ न +झ०झ-प॑मननन मनन >> नमन ल3+लत-3नतननलनतत+---4 ०-० काफक-न-न-ननक कान <कनन->क--3५०५कभ+>-क न...» ०थकककननरन नल कर ित न तनमन कि कर ८-+ पबनन मनन न नमन + पतन न तीज नि नाभि तनन टन भनञन++-+००+५० ८253८%>30%>36%८%८५०८५ ६%८३(८० 5 ०जट 5५9८५ टछं




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