पुरुषार्थ सिद्धयुपाय | Purusarth Sidyupay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
486
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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वाली ट्टीतो नहीं है। इसीपकार बर्तु कहनेसे वस्तुल-गुणका, ज्ञानी कहनेसे न ज्ञानगुगवालेका बोध होता
है। एक शब्दसे समस्त वस्तुका बोध कभी नहीं हो सकता। शब्दमें वह शक्ति ही नहीं है कि सर्वधर्मोको |
एक साथ प्रतिषादन कर सके। इसका भी कारण यह है ड्टेकि जितने थी शब्द बनते ईं वें सब पातुओंधे ।
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बदते हैँ : धातुएँ क्रियात्मक होती हैं, क्रिया | एक समय एक ही धमका योतन करती ह्ढे। इसलिये शब्दों.
द्वारा जोकुछ वरठुखरप कहा जायगा, चह भेदात्मक ही पडेगा । परतुसरूप अश्ि जिनद्ध है,अतः निश्रयनय
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जीवका शनझुण दे! ड्स कथनका भागमथ्या समझता है । शब्दों द्वारा प्रतिषादित अेदात्मक धर्मोका ।
निषेध करते डर भी अनन्तग॒ुगोंका अभिन्नरू्प अखंडपिंडरूप अवक्तव्त जीव द्रव्य ही निश्चय नयका ।
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विषय पडता हैं | उपयुक्त केथनका सार इतना हा हु कि निश्रयनयका विषय अवक्तव्यरूप सावद्रज्प
है। बाकी समस्त भेद्रूपे कथन व्यवहारतयका | विषय हैं! जीवके ज्ञान कहना, यह भी ब्यवहारनपका
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ही विषय है । क्योंकि ह्र्व्य गुण भेद प्रगद किया ह्टे। यहां पर पद शंका की जा सकती है कि जब
द्रव्ययग का क कथन भी पिथ्या हे जो कि वास्ताविक है, तो परनिभित्तते जितना भी कथन दोग। बह तो |
अवश्य ही भिथ्या होगा । जेसे किसी पुरुषको क्ोधी कहना । क्रोध ज्ञानकी ' तरह आत्माका निजसरूप ।
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तो नहीं है, किंतु पुदुलद्र व्यके निमित्तसे होनेवाला आत्माका वेभाविक परिणाम डे ॥ यह तब कथन |
विश्रियनयतत भिथ्या ठहरता है, - तो क्या व्यवह्ारनयका विषय सब भिथ्या ही है ? यदि ऐपा हे
व्यवहारनय भी भिथ्या ठहृरा.* इस शंकाका उत्तर यह है कि- ।
जो व्यवहारनयका विषय है; वह निश्रयनयपते मिथ्या इसलिये है कि वह नय शुद्वस्तुस्वरूपको | ।
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ही विषय करता है । परन्तु व्यवहारनय भी मिथ्या नहीं है, परानिभित्तसे होने नेवाे पममाकां विषय करना |
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