वेदा मृत | Vedamrit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
454
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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( बिष्णी- ) सर्वब्यापक ईश्यरके ये ( कमाणि ) सब कर्म ( पश्यत ) देखिए।
( यतः ) जिससे ( घतानि ) शतों फो अर्थात् घधर्मनियमॉंकी (परपशे ) जाना
जाता है। यह (इन्द्रस्य ) जीवात्माका ( युज्यः ) योग्य ( सखा ) मित्र है ॥
इस जगतूमे सर्वव्यावक परमात्माके अरूत कर्म स्थान स्थानमें हो रहे है ।
उनका देख कर इंध्यर के सामथ्ये फी कल्पना करनी चाहिए । चह ईश्वर
॥। जीवास्मा का सश्या मित्र हं'नस ही जीवात्माफके दितके लिय सब कार्य इस
जगत् में कर रहा है । यही उसकी झआपार दया है ।
जब अब कैट स्क्ड्य्ध्प्यन्य छा
(विप्णा -) सर्वव्यापक परमान्माफा ( तत् ) घट्द (परम पर्द) परम पद है जिसको
(सरय ) तानी लोग (सदा! सदा (पश्याति) देखते है । जिस प्रकार ( दिवि इच )
शलोकम ( चछ्ु ) जगत्फा सयरूपी आंख ( झा ततम) खोलकर रखा हैं।
उस प्रक्रार ज्ञानी लागोंको परमात्माफा साप्चात्कार होता है, जसे साधा-
रण लोगोंकी सय दिखाई देता हे । घिचारकी द॒ृफ्टसि जो लोग इस जगस् को
देखते है, उनको परमात्माका साक्षात्कार सत्र होता है।
नहिप्रांसो विपन्यवों जागवांसः सर्मिन्धते ।
विष्णोग्रेत्परम एदम्॥ २१॥ ऋ १२२॥
, विष्णो 3 चिप्णुफा (यत्त ) जो ( परम पदम् ) परम पद है ( तस् )
डस विपन्यव ) फथि, ( विप्रास ) ज्ञानी, ( जाशब्यंस ) जाग्रत रहनवाले
अर्थात जा दस हात है, / सर्सिधत ) प्रकाशित करते हैं ।
,१ ऊफकाय चे है जा शब्दका मर्म जाननवाले होते हैं। ( २) ज्ञानी घ हैं
) तद्विष्णों! परम पद सदा परयन्ति सरयः ।
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! दिचींब चक्तुरात॑नम् ॥ २० ॥ ऋ, १२२॥
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५ ला आत्माशानस युक्त हात है । (३) आर जाशत व हे कि जो सुस्त नहीं, ॥
॥| परन्तु द्दताके साथ सदा पुरुषाथर्म तत्पर रहते है। ये ही परमात्माफे परम |
९, पका प्राप्त करते है ' अश्रन्य सिद्धियां भी इन्हींकों मिलती हैं। अर्थात् ज्ञान, पर
' विज्ञान तथा जागृत रहना इन नीन गुणोल सिद्धि प्राप्त होती है । ते
3 विष्णानु के बीयाएि प्र बोच ये पाधिवानि विममे |
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३ रजाँसि | यो अस्केसायदुत्तरं सधस्थ विचक्रमाण- !
ं स्तेधोरंगायः ॥| १1१५४४।१॥
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५, विप्गोः नु वीयाणि ! ध्यापक देवके हीं अ्रदूभुत पराक्रम ( क॑ प्रयोत ) ।
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शीघ्रात कटता हू; (य ) ज्ञा' पाथिवानि ) प्रथिवीसेबधी £ गजांसि विमम ) ६
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