हिंदी ध्यानयालोक | Hindi Dhvanyalok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
558
श्रेणी :
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डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
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विश्वेशर सिद्धांतशिरोमणि - Vishveshavar Siddhantshiromani
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाईस
था कि प्रचन्ध काव्य के साथ तो उसका सब-्ध ठीक बैठ जाता था, परन्तु स्फु्ट
छन्दों के विषय में विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी झादि का सड्भूठन सर्वत्र ने हो
सकते के फारएा कठिनाई पडतो थी भौर प्राय भत्यन्त सुन्दर पदों को भी _
उचित गोरव न मिल पाता था। घ्वनिकार ने इन त्रूटियों को पहिचाना प्रोर
सभी का उचित परिहार करते हुए शब्द को तीसरी शकित ध्यञजना पर आश्रित
ध्वनि को काव्य की श्रात्मा घोषित किया |
ध्वनिकार ने झ्पने सामने दो निश्चित लक्ष्य रखे हे--१ ध्यनि-
सिद्धान्त की निर्भ्रास्त शब्दों में स्थापना करना, तया यह सिद्ध करना कि पूर्व वर्तो
किसो भी सिद्धान्त के भ्रन््तमत उसका समाहार नहीं हो सकता। २--स्त)
अलडुपर, रोति, गुण और दोष विषयक सिद्धान्तो का सम्यक् परीक्षण करते का सम्यक् परीक्षण करते
हुए ध्वनि के साथ उनका सम्बन्ध स्थापित करता झोर इस प्रकार काव्य के
किए व पहल व कप स्ः | सिद्धान्त की एक रूप-रेखा बांधना | फहने की झ्रावश्यकता नहीं
कि इन दोनों उद्देदयों की धूति में प्वोनिकार सर्वया सफल हुए है। यह सब होते
हुए भी ध्वनि सम्प्रदाय इतना लोकप्रिय न होता यदि अ्रभिनवगुष्त की प्रतिभा
का वरदान उसे न मिलता । उतके लोचन का घही गौरव है जो सहाभाष्य का।
प्रभिनव ने अश्रपनो तल्न स्पशिनी प्रज्ञा श्रोर प्रौ़ विवेचन के द्वारा ध्यनिः
विपयक समस्त भ्रास्तियों श्रोर श्ाक्षेपों को निर्मूल कर दिया ब्रौर उधर रत की
प्रतिष्ठा को प्रकाटय शब्दों में स्थिर किया।
ध्यनि का अर्थ और परिमापा -
ध्वनि की ध्याएया के लिए निसर्गंत सबसे उपयुवत ध्वनिकार वे ही '
शब्द हो सकते हू .
यत्रार्थः शो था तमथेमुपसजनसितस्वाथों ।
व्यक्त काव्यविशेष सध्यनिरिति सूरिमभि: कथितः॥
जहाँ भर्य स्वथ को तथा शब्द ध्पने प्रभिषेय अर्थ को गोए करके 'दस
भर्य को प्रकाशित करते हे, उस शाध्य विश्ञेष को विद्वानों ने ध्वनि कहा है ।
उपदुंबत कारिका को स्वय घ्दनिकार ने हो और भागे ध्यास्या करते
हुए लिखा हे - यत्रार्यों वाच्य विशेषो दाचहवि विशेष दाद डर
स॒ काष्यविशेषों ध्वनिरिति ! वेशय शब्दों बा तम्े व्यक्त,
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