श्री वर्षप्रबोध | Shri Varshprabodh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Varshprabodh by हनुमान शर्मा - Hanuman Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हनुमान शर्मा - Hanuman Sharma

Add Infomation AboutHanuman Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका | अ्लिडिना साथ और परगाथ दोनों के छिये ज्योतिष शाज्र वहुतही अच्छा है। इसके फित प्रग्थेमिसे नित्य व्यवहारकी उपयोगी बातें ट्रैंढकर उनका अभ्यास किया जाय तो वह मनुष्य घरहीम बेढा हुवा धनी मानी भौर परोपकारी होस- पता है. किन्तु एक बतफे लिये अनेकों प्रन्योका भम्यास किया जाय तब सफछता होती है और ऐसा करनेके डिये आज बके प्रायः 'निदुयमी' निरुसाही, निराश्रयी, निरायपी, छोग कहांतक ऐसे कारमोमें तन, मत, भ्न छगा सकते हैं अतएव ऐसेही छोगोंके उपकार डिये श्रीमेषबिजय महाह्यने वाराहीसंहिता?? झ्ादि कई एक सहिताओंसि सामग्री इकट्ठी करके यह “बपप्रयोध!! बढुतही उत्तम निर्माण किया था और इसमें खेती करनेगा- छोके उपयोगी, व्यापारयोंकें उपयोगी तथा धनमाही अथवा परोपकारी पद्चितोंफे उपयोगी एई वार्तोका अच्छा सं॑प्रह्द किया था किन्तु काछम्तरके कारण अथवा दु्मतासे यह संभ्रह छिर्न मित्र होकर खंडित होगया। भौर सद्बवस्था रूपसे भव कहीं मिडतामी नहीं है यद्यपि मापाटीका सहित एक मिलताह विम्तु वह ऐसा है मानो खुले पर्नोकी पुरतक श्रांधीमें 2डगई दो और उसीको ढूंढ ढांढकर विद्य नावर देखेददी ष्यौंकी त्यीं छापदी दो, क्योंकि उसमें “एबिस्‍ीयप्ग्रेक दश दश समीमेप्त,आाठ जाठ अग-जोत रेहैंह मर यौ३ एक विषय श्घर के उधर छिन्त मिन्न होकर खंडित होरहे हैं । संमदतः इसीकारणसे पिद्नेंकि उपयोगमे यह ग्न्य विशेष नहीं जाता है. सतएवय इंन सब. गड़- ब्रशध्यायोंफी देखकरदी गैने झद इस पअन्यका फिरस संग्रद्ठ किया है भौर जहां जहां जो जो बुठछ पुटियां मशुद्धियां न्‍्यूनता वा छोम विछोम थीं उन सबको काट छाट फरेस्दद्ज,भर समिश्रण करके इसे ययासाध्य सांगोपांग-सदधबत्प




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now