पञ्च तंत्र | Pancha Tantra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
483
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेंद १. ] आपाणकासम्रेत ! (११)
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यसुताजलले मिली वत्यन्तशीतर वायुद्धारा सप्तशरीरसे किछ्तीमकाणए
उठकर यमुनाके फ़िनारे धाप्त हुआ,वढां मरकवमशिकी समान छोटे ठणके
अग्नरभाग भक्षण करता हुआ कुछ दिनों शिवजीके दृपभके समान स्पूल
ऋक्कदवाला बलवान हुआ अतिदिन वल्मीकके शिखरके अमग्नभागोंका
अंगीसे घिदीर्ण करता गज़ता रहा। कहा भी सत्य है कि-
अराक्षित तिष्टति दवरक्षित सुरक्षित देवहते विनश्याति ।
जीवत्यनाथोशप बने ववेत्तानिताः कृतप्रयत्तोशप सह विनइयति ॥
धभ्तिपादित वस्ठ देवसे रक्षिठ हुई स्थित रददवी दे, मलीप्रकार रक्षित
हुई पस्तु भी दैवसे अरक्षित हो न होजाती है, अनाय भी घने त्यागन
किया जीता ई यरन करनेपर भी घरमे नहीं जीता दे । देशस्प घूत्त ॥ २० 5
अथ कदणचेत् पिड़लकों नाप्न (86: सबमुगपरंद्रत: एपपसए-
कुछ ठउदुकपानाथ यलुनावटमवत।णं: सर््नीवकस्प गम्भीरतरारार्व
इसदंव अथणोत् । दच्छुखा अताव व्याकृडह॒द॒यः ससलाध्यसपाकार
प्रच्छा्ध चंव्तछ चतुप्रण्डछावत्यानंन अवास्यत्तः चतुमण्डलाब-
स्थान सलेदम-सद सिद्ाचुयायंना काकरवा! काता होतें। अय
तस्य करट्कद्मनकनामानी दी शगाडी मम्त्रिपुत्नी अष्ाषिकारी
सदानुयायंना। आस्ताय । तो च परस्पर मन्जयतः । त्त्र दमनको-
अम्रगत- मद फरटक ! अय॑ तस्दस्मत्स्थामी पिड्लक उदकप्रह-
णाथ यम्ुनाकच्छमवर्दीय्य स्थित: सके तिमित्त विपायाक्ृछोंइपि
निवृत्प व्यूदरचनां विधाय दौर्मनस्पेनामिमूतोड्ञ बटतके स्थित! 07
करटक आह -* अभद्र ! क्रियावयोरनेन व्यापारंण 1 उक्तल्व यतः
एक समय पिंगकूक माम सिंद सग्पूर्ण सगेंसि युक्त प्यापले व्याफुल जकछ
पीनेके मिमित्त यमुनाके किनारे) संजीवकका अधिक गम्भीर शब्द
दुरसे छुतता अपा । बह छुन अत्यन्त व्याकुल हृदय दो कर भपके आाकारकोा
क्िपाकर घण्छ्के नीचे चलुर्मण्डलादस्थान ( जिसके चार्रों प्मोर म्टग घेठे
हों ) से बेटा । चतुर्मण्डलावस्थान इनको कद्दते हें कि-सिद्द/सिदालपायी,
काकरव ( काककेसेशब्द छरनेवाले ), किंवृत्त ( कया उपस्थित हुआदै,इस
यृत्नान्तके जाननेवाले ) बैठे । तव उसके कशस्टक, दमरूदः नामवाले दो
हगाए मन्द्रीफे छुउ ध्रधिकारसे शटसदा अछुयायी थे। चइ दोनों परस्पर
सम्मदि करने लगे. उसमें दमनक बोछा-भद्ध कस्टक | यह वो इमाशा
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