धम्मपद | Dhampadam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
653 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२।८ ] अप्पमादवग्गो [१३
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श्रनुवाद--मेघावी ( पुरुष ) उद्योग, अप्रमाद, संयम, और दस द्वारा
( अपने लिये ऐसा ) द्वीप बनावें, जिसे बाढ़ नहीं डुबा सके।
जेतवन वालनक्खतघुद्द ( होली )
२६-पमादमनुयुञ्जन्ति बाला दुम्मेषिनो जना ।
अप्पमाद्ख मेधावी धनं सेट्ठं 'व रकखति ॥६॥
( प्रमादमनुयुजन्ति बाला दुर्मेघलो जनाः।
अप्रमादं च्व मेधावी धन श्रेएमिव रक्ष्ति॥६॥ )
श्रनुवाद--मूख दुर्मेघ जन प्रसादर्मे छंगते हैं; मेधावी श्रेष्ठ धनकी
भाँति अप्रमादकी रक्षा करता है।
२७-मा पमादमनुयुब्जेयः मा कामरतिसन्यवं ।
अ्प्पमत्तो हि ायन्तो पप्पोति विषलं सुखं ॥७॥
(मा प्रमादमनुयुंजीत मा कामरतिसंस्तवम्।
अप्रमत्तों हि घ्यायन् प्राप्नोति विषुलं खुखम्॥»॥ )
अनुवाद--मत प्रसादमें फँसो, सत कासोंमें रत होओ, सत काम
रतिमे लिप्त हो। प्रमादरह्िित ( पुरुष ) ध्यान करते सहान्
सुखको प्राप्त होता है ।
जेतवन महाकस्सप ( थेर )
२८-पमाद अश्रप्पमादेन यदा नुदति पणिडतो।
पञ्मापासादमारुय्ह असोको सोकिरनिि पं ।
पब्बतट्ठो 'व भूम्मट्ठे घीरो वाले अवेक्खति ॥८॥
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