धम्मपद | Dhampadam

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Dhampadam by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२।८ ] अप्पमादवग्गो [१३ न जनम नल «+८+८--++-न मन ं श्रनुवाद--मेघावी ( पुरुष ) उद्योग, अप्रमाद, संयम, और दस द्वारा ( अपने लिये ऐसा ) द्वीप बनावें, जिसे बाढ़ नहीं डुबा सके। जेतवन वालनक्खतघुद्द ( होली ) २६-पमादमनुयुञ्जन्ति बाला दुम्मेषिनो जना । अप्पमाद्ख मेधावी धनं सेट्ठं 'व रकखति ॥६॥ ( प्रमादमनुयुजन्ति बाला दुर्मेघलो जनाः। अप्रमादं च्व मेधावी धन श्रेएमिव रक्ष्ति॥६॥ ) श्रनुवाद--मूख दुर्मेघ जन प्रसादर्मे छंगते हैं; मेधावी श्रेष्ठ धनकी भाँति अप्रमादकी रक्षा करता है। २७-मा पमादमनुयुब्जेयः मा कामरतिसन्यवं । अ्प्पमत्तो हि ायन्तो पप्पोति विषलं सुखं ॥७॥ (मा प्रमादमनुयुंजीत मा कामरतिसंस्तवम्‌। अप्रमत्तों हि घ्यायन्‌ प्राप्नोति विषुलं खुखम्‌॥»॥ ) अनुवाद--मत प्रसादमें फँसो, सत कासोंमें रत होओ, सत काम रतिमे लिप्त हो। प्रमादरह्िित ( पुरुष ) ध्यान करते सहान्‌ सुखको प्राप्त होता है । जेतवन महाकस्सप ( थेर ) २८-पमाद अश्रप्पमादेन यदा नुदति पणिडतो। पञ्मापासादमारुय्ह असोको सोकिरनिि पं । पब्बतट्ठो 'व भूम्मट्ठे घीरो वाले अवेक्खति ॥८॥




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