श्री हरिवंशपुराण [खण्ड २] | Shri Harivansh Purana [Vol. 2]

Book Image : श्री हरिवंशपुराण [खण्ड २] - Shri Harivansh Purana [Vol. 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ष ] [ श्री हरिवंश्वपुराण बडा आनन्द आने लगा 15-१०॥ फिर उहोने सुन्दर मुसकान वाली अत्यत रूप- चती वज्चनाभसुता प्रभावती को देसा तो एक-एक हस ने उससे परिचय प्राप्त बर लिया और उनमे जो एक शुचिमुखी ह॒सी थी, उससे तो उमका सहेली भाव ह्दी होगया ॥११-१२॥ तदनन्तर एक दिन उस हमी और प्रभावती के मध्य विविध वार्त्तायें छिड गईं और तब अवसर पाकर हमी ने उप्तते कहा--हे सखी तुम रूप, गुण, स्वभाव जआादि मे तीनो लोको से सर्वेश्व प्ठ सुन्दरी हो। मैं देखती हूँ कि तुम्हारी यौवनावस्था व्यतीत होती जारही है | जैसे जल का प्रवाह पीछे को नही लौटता, देसे ही गया हुआ यौवन पुन नहीं आता ॥१३-१५॥ कामोपभोगतुल्या हि रतिर्देवि न व्िद्यते । सत्रीणा जगति कल्याणि सत्यमेतद्ब्वीमि ते ॥१६ स्वयवरे च न्यस्ता त्व पित्रा सर्वाज्भशोमने । न च वाशिचद्व रयसे देवासुरकुलोज्भवान्‌ ॥९० ब्रीडिता यान्ति सुथ्रोणि प्रत्याब्यातास्त्वया शुभे । रूपशौयंगुणय क्तान्सहशास्त्व कुलस्य हिं ॥प८ जागतान्नेच्छसे देवि सहशान्कुलरूपयो ॥ इह्ैष्यति किमर्थ त्वा प्र्यू म्तो रक्मिणीसुत ॥६९रेँं अर लोक्ये यस्य रूपेण सहशो न कुलेन वा । शुणर्वा चारुसर्वाज्ि शौयेंगाप्यति वा शुभे 11२० देवेपु देव सुश्रोणि दानवेपु च दानव । मानुपेष्वपि धर्मात्मा सनुष्य स महाबल 0२१९ य सदा देवि हृष्टा हि ख़बन्ति जघनानि हिं। आपीनानीव घेनुना स्रोतासि सरितामिव 11२२ स्त्रियों के लिये भोग के समान बातन्दप्रद कोई वस्तु नहीं है यह मैं सत्य बहती हैँ 1१६७ मैं हँसी नही कर रही हूँ तुम्हारे पितः ने तुम्ह स्वेच्छापूर्वक पति वरण बरने का अधिकार दिया है, परन्तु तुम दैत्यवश् अथवा देववश के किसे; मी 'उरुप को पसद नहे। कर रहे| हो ताजा जो नी तुम्हारे वश, रूप,




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