महाभारत शल्यपर्व | Mahabharat Shalyaparva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भंध्याय हे ) शह्यपर्च २३
वायुनेव विधूतानि तवानीकानि सर्वेशः।
इरदम्भभोदजालानि व्यशीयेन्त समन्ततः ॥ २८ ॥
जैसे शरदकालके मेघ वायु लगनेसे फट जाते हैं, ऐसे ही अज्जुनकी मारसे तुम्हारी सेना सब
ओर भागी जाती है ॥ २८ ॥
तां नावमिव पयेस्तां श्रान्तवातां महाणवे ।
तव सेनां महाराज सव्यसाची व्यकम्पयत् ॥ २९॥
महाराज ! जैंसे मद्दा सप्रद्रमें पडी नावकों वायु हिला देता है, ऐसे ही सव्यसाची अजुनने
तुम्दारी सेनाकी कंपा दिया है ॥ २९॥
क नु ते सूतपुश्रो5भूत्क नु द्रोणः सहानुगः ।
अहँ क च क चात्मा ते हार्दिक्यश्व तथा क नु
दुशशासनश्र भ्राता ते भ्रातृभिः सहितः क नु ॥३०॥
अर्जुनके आगे खतपुत्र कण, सद्दायकों सहित द्रोणाचार्य कया थे ? हम, तुम, ऋृतवर्मा,
भाईयोंके सद्दित तुम्दारे भाई दुःशासन, अर्जुनके वाणोंके आगे क्या वस्तु हैं? ॥ ३०॥
घाणगोचरसंप्राप्त प्रेशष्य चैव जयद्रथम्।
संबन्धिनस्ते भ्रातूंश्व सहायान्मातुलांस्तथा ॥ ३१॥
देखो, जयद्रथक्ों अजुनके बाणोका निशाना बनते ये सभी चीर देखते थे, परन्तु तुम्हारे
सम्बन्धी, भाई, सहाययक और मामा ॥ ३१॥
सवान्विक्रम्य मिषतो लोकांशाक्रम्प सूधनि।
जयद्रथो हतो राजन्कि नु शेषसुपास्महे ॥ ३२ ॥
सबकी अपने पराक्रमसे जीतकर और सबके शिरपर होकर सबके देखते देखते जयद्रथको मार
डाला। राजन् ! अब कौन ऐसा वीर बचा है जिसका हम विश्वास करें ? ॥ ३२॥
को वेह स पुमानस्ति यो विजेष्याति पाण्डवम्।
तस्थ चासत्राणि दिव्यानि विविधानि महात्मनः।
गाण्डीवस्थ च निर्धोषो चीयोणि हरते हि नः ॥ ३३॥
कौन यहां ऐसा पुरुष है जो पाण्डपुत्र अर्जुनकों जीतेगा ? महात्मा अर्जुन नाना प्रकारके
दिव्य अख्नशख्रोंकी जानते हैं । उनके ग्राण्डीव धलुपका टक्षार सुनते ही हमारा धीर जाता
रहता है ॥ ३३॥
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