महाभारत शल्यपर्व | Mahabharat Shalyaparva

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Mahabharat Shalyaparva by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भंध्याय हे ) शह्यपर्च २३ वायुनेव विधूतानि तवानीकानि सर्वेशः। इरदम्भभोदजालानि व्यशीयेन्त समन्ततः ॥ २८ ॥ जैसे शरदकालके मेघ वायु लगनेसे फट जाते हैं, ऐसे ही अज्जुनकी मारसे तुम्हारी सेना सब ओर भागी जाती है ॥ २८ ॥ तां नावमिव पयेस्तां श्रान्तवातां महाणवे । तव सेनां महाराज सव्यसाची व्यकम्पयत्‌ ॥ २९॥ महाराज ! जैंसे मद्दा सप्रद्रमें पडी नावकों वायु हिला देता है, ऐसे ही सव्यसाची अजुनने तुम्दारी सेनाकी कंपा दिया है ॥ २९॥ क नु ते सूतपुश्रो5भूत्क नु द्रोणः सहानुगः । अहँ क च क चात्मा ते हार्दिक्यश्व तथा क नु दुशशासनश्र भ्राता ते भ्रातृभिः सहितः क नु ॥३०॥ अर्जुनके आगे खतपुत्र कण, सद्दायकों सहित द्रोणाचार्य कया थे ? हम, तुम, ऋृतवर्मा, भाईयोंके सद्दित तुम्दारे भाई दुःशासन, अर्जुनके वाणोंके आगे क्‍या वस्तु हैं? ॥ ३०॥ घाणगोचरसंप्राप्त प्रेशष्य चैव जयद्रथम्‌। संबन्धिनस्ते भ्रातूंश्व सहायान्मातुलांस्तथा ॥ ३१॥ देखो, जयद्रथक्ों अजुनके बाणोका निशाना बनते ये सभी चीर देखते थे, परन्तु तुम्हारे सम्बन्धी, भाई, सहाययक और मामा ॥ ३१॥ सवान्विक्रम्य मिषतो लोकांशाक्रम्प सूधनि। जयद्रथो हतो राजन्कि नु शेषसुपास्महे ॥ ३२ ॥ सबकी अपने पराक्रमसे जीतकर और सबके शिरपर होकर सबके देखते देखते जयद्रथको मार डाला। राजन्‌ ! अब कौन ऐसा वीर बचा है जिसका हम विश्वास करें ? ॥ ३२॥ को वेह स पुमानस्ति यो विजेष्याति पाण्डवम्‌। तस्थ चासत्राणि दिव्यानि विविधानि महात्मनः। गाण्डीवस्थ च निर्धोषो चीयोणि हरते हि नः ॥ ३३॥ कौन यहां ऐसा पुरुष है जो पाण्डपुत्र अर्जुनकों जीतेगा ? महात्मा अर्जुन नाना प्रकारके दिव्य अख्नशख्रोंकी जानते हैं । उनके ग्राण्डीव धलुपका टक्षार सुनते ही हमारा धीर जाता रहता है ॥ ३३॥




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